धूर्तों के हथकण्डे | tricks of tricksters
बहुबुद्धिसमायुक्ताः सुविज्ञानाश्छलोत्कटाः। शक्ता वञ्चयितुं धूर्ता ब्राह्मणं छगलादिव।
धूर्तता और छल से बड़े-बड़े बुद्धिमान और प्रकाण्ड पंडित भी ठगे जाते हैं।
एक स्थान पर मित्रशर्मा नाम के धार्मिक ब्राह्मण रहता था।
एक दिन माघ महीने में, जब आकाश पर थोड़े-थोड़े बादल मंडरा रहे थे, वह अपने गाँव से चला और दूर के गाँव में जाकर अपने यजमान से बोला-यजमान जी!
मैं अगली अमावस के दिन यज्ञ कर रहा हूँ।
उसके लिए एक पशु दे दो।
यजमान ने हृष्ट-पुष्ट पशु उसे दान दे दिया। ब्राह्मण ने भी पशु को अपने कन्धों पर उठाकर जल्दी-जल्दी अपने घर की राह ली।
ब्राह्मण के पास मोटा-ताज़ा पशु देखकर तीन ठगों के मुख में लोभवश पानी आ गया।
वे कई दिनों से भूखे थे। उन्होंने उस पशु को हस्तगत करने की एक योजना बनाई।
उसके अनुसार उनमें से एक वेश बदलकर ब्राह्मण के सामने आ गया और बोला :
ब्राह्मण! तुम्हारी बुद्धि को क्या हो गया है ?
इस अस्पृश्य- -अपवित्र कुत्ते को कन्धों पर उठा कर क्यों ले जा रहे हो ?
उसे भी ब्राह्मण ने क्रोध से फटकारते हुए कहा-अन्धा तो नहीं हो गया तू, जो इसे मृत पशु बतला रहा है!
ब्राह्मण थोड़ी ही दूर और गया होगा कि तीसरा धूर्त भी वेश बदलकर सामने से आ गया।
ब्राह्मण को देखकर वह भी कहने लगा-छिः छिः ब्राह्मण! यह क्या कर रहे हो ?
गधे को कन्धों पर उठाकर ले जाते हो! गधे को तो छूकर भी स्नान करना पड़ता है।
इसे छोड़ दो। कहीं कोई देख लेगा तो गाँव-भर में तुम्हारा अपयश हो जाएगा।
यह सुनकर उस ब्राह्मण ने पशु को गधा मानकर रास्ते में छोड़ दिया।
वह पशु छूटकर घर की ओर भागा, लेकिन ठगों ने मिलकर उसे पकड़ लिया और खा डाला।
इसीलिए मैं कहता हूँ कि बुद्धिमान व्यक्ति भी छल-बल से पराजित हो जाते हैं।
इसके अतिरिक्त बहुत-से दुर्बलों के साथ भी विरोध करना अच्छा नहीं होता।
साँप ने चींटियों से विरोध किया था; बहुत होने से चींटियों ने साँप को मार डाला। |