सतगुरु माफ करो तकसीर।। टेक।।
सब विधि समरथ जानि आज मैं आया तुम्हारे तीर।
पर पीड़ा हिंसा जीवन भर, लादा पाप शरीर।
पर धन परतिय लम्पट यह मन, नाचत मृग जिमि नीर।
शेखी बड़ी मान का भूखा, तेहि बिन रहत अधीर ।।
जो दे मान बड़ाई झूठी, वही गुरु वह पीर।
जिनसे अंकुश मन पर आवे, तेहि संग जाय न फीर।
तुम तो मर्दन करो मान का, गुरु मेरे रणधीर।
इससे बार-बार मन भागे, नेक धरे नहिं धीर।
पर यह जानि साथ नहिं छोडूं, कोई न तुम सा वीर।
अब तो जयगुरुदेव शरण में, यह मन पाया धीर।
कांगा से हंसा होई बिचरे पियत क्षीर तजि नीर।
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