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भगवान हनुमान हिंदू धर्म में सबसे अधिक पूजे जाने वाले देवताओं में से एक हैं। उन्हें उनके साहस, शक्ति और उनकी सुरक्षा की दिव्यता के लिए माना जाता है। उनकी पौराणिक कथाओं का वर्णन रामायण में विस्तार से मिलता है और उनकी भूमिका सम्पूर्ण रामायण प्रसंग में मुख्य थी। उनके बारे में प्रचलित मान्यताओं में उनकी श्री राम के प्रति अटूट भक्ति, श्रद्धा भावना, उनकी बचपन की शरारतें और माता सीता को खोजने में प्रभु श्री राम की सहायता करना मुख्य रूप से वर्णित हैं।
सिर्फ रामायण ही नहीं बल्कि महाभारत और अन्य पुराणों में भी हनुमान जी की भक्ति का वर्णन किया गया है। ऐसी मान्यता है कि उनका जन्म चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को हुआ था, इसलिए इसी दिन हनुमान जयंती मनाई जाती है। हनुमान जी को पवनसुत, केसरी नंदन, बजरंगबली जैसे कई नामों से भी जाना जाता है। आइए जानें उनके जीवन से जुड़ी कुछ ऐसी बातों के बारे में जिनसे शायद आप सभी अंजान होंगे।
हनुमान जी भगवान शिव के अवतार थे
पौराणिक कथाओं में इस बात का जिक्र है कि केसरी और अंजना के पुत्र,थे लेकिन वास्तविकता यह भी है कि वो भगवान शिव का अवतार थे और उन्हें शिव जी के अंश के रूप में भी पूजा जाता है। हनुमान जी को पवन पुत्र के रूप में भी जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि जब भगवान विष्णु ने पृथ्वी पर राम अवतार लिया तब भगवान शिव ने उनके साथ रहने के लिए पृथ्वी पर हनुमान रूप में अवतार लिया।
हनुमान उनका जन्म से नाम नहीं था
हनुमान जी का नाम जन्म के समय हनुमान नहीं था बल्कि एक बार उन्होंने सूर्य को कोई मीठा फल समझकर निगल लिया था। तब इंद्रा ने सूर्य को मुक्त करने के लिए वज्र प्रहार किया और उनका जबड़ा सूज गया। तभी से उनका नाम हनुमान पड़ा क्योंकि हनुमान संस्कृत के हनुमत शब्द से बना है। हनुमत एक शब्द और एक प्रत्यय का जोड़ है। हनु या हनू का अर्थ है जबड़ा और मत प्रत्यय बन जाती है। तो, हनुमान का अर्थ है वह जिसका जबड़ा सूज गया हो या विकृत हो गया हो।
हनुमान जी की मूर्ति का रंग लाल या नारंगी क्यों होता है
इसकी एक पौराणिक कथा के अनुसार एक बार भगवान हनुमान ने सीता जी को माथे पर सिंदूर लगाते हुए देखा और पूछा कि यह उनके दैनिक अनुष्ठानों का हिस्सा क्यों है। तब सीता ने हनुमान को समझाया कि सिंदूर श्रीराम की लंबी उम्र, उनके पति के प्रति उनके प्रेम और सम्मान का प्रतिनिधि है। श्री राम के प्रति निष्ठावान भक्ति की वजह से हनुमान जी ने अपने पूरे शरीर को इस सिंदूर से लेपने का निर्णय लिया और हनुमान जी को सिंदूर से रंगा देखकर उनकी भक्ति से प्रभावित होकर भगवान श्री राम ने वरदान दिया कि जो लोग भविष्य में सिंदूर से हनुमान जी की पूजा करेंगे, उनकी सारी कठिनाइयां दूर हो जाएंगी और यही कारण है कि मंदिर में आज भी हनुमान जी की मूर्ति सिंदूर से रंगी होती है।
रामायण ही नहीं महाभारत में भी थी हनुमान जी की उपस्थिति
पौराणिक कथाओं के अनुसार हनुमान जी की उपस्थिति राम के समय में यानी रामायण काल में मौजूद थी। लेकिन शायद ही किसी को ये ज्ञात हो कि हनुमान जी अर्जुन के रथ पर अपने चित्रित ध्वज के रूप में कुरुक्षेत्र के युद्ध के मैदान में भी उपस्थित थे। ऐसा उन्होंने भगवान कृष्ण की श्रद्धा के रूप में किया था। भगवान कृष्ण भी विष्णु जी का दसवां अवतार थे और इसी वजह से हनुमान जी उनके साथ उपस्थित थे। हनुमान जी की उपस्थिति ने कुरुक्षेत्र युद्ध में रथ और उसके निवासियों को सुरक्षा प्रदान की और जैसे ही युद्ध में विजय मिली हनुमान जी वापस अपने मूल रूप में आ गए।
क्यों रखा पंचमुखी हनुमान का रूप
ऐसा कहा जाता है कि भगवान हनुमान ने राम (भगवान राम से जुड़े कुछ सवाल)और लक्ष्मण का अपहरण करने वाले पाताल के राक्षस राजा को मारने के लिए पंचमुखी हनुमान का रूप धारण किया था। हनुमान को इस बात का पता लगा कि अहिरावण को मारने के लिए उनको एक ही समय में पांच दीपकों को बुझाने की जरूरत है क्योंकि उनके भीतर राक्षस राजा की आत्मा रहती है। इसलिए भगवान हनुमान पांच सिरों में रूपांतरित हो गए। पंचमुखी हनुमान के रूप में केंद्र में हनुमान जी मौजूद थे। दक्षिण में नरसिम्हा जी थे जो शेर के रूप में थे, पश्चिम में गरुड़ जी, उत्तर में सुअर का सिर और आकाश के सामने एक घोड़े का सिर था।
भगवान हनुमान अमर हैं
हिंदू ग्रंथों में आठ चिरंजीवियों का उल्लेख है और भगवान हनुमान उनमें से एक हैं। ऐसा कहा जाता है कि वह कलयुग के अंत तक श्री राम के नाम और कहानियों का जाप करते हुए इस धरती पर चलेंगे। हनुमान जी को इस युग में भी पूजनीय माना जाता है और उन्हें अमर मानते हुए ही उनकी पूजा की जाती है। |
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