जय गुरु देव
समय का जगाया हुआ नाम जयगुरुदेव मुसीबत में बोलने से जान माल की रक्षा होगी ।
परम सन्त बाबा उमाकान्त जी महाराज, उज्जैन (मध्य प्रदेश)
अगस्त्य मुनि ने कावेरी में भव्य नट्टत्रीश्वर मंदिर बनाया (Agastya Muni Ne Kaveree Me Bhavya Nattatrisvara Mandir Banaya Kahani)

Agastya Muni built the grand Nattatrisvara temple in Kaveri | Hindi Stories

नट्टत्रीश्वर मंदिर नाम का एक अद्भुत मंदिर कावेरी नदी के प्रवाह के ठीक बीच में आये हुए एक द्वीप में है। नदी जहाँ से शुरू होती है, उस तल कावेरी से लेकर समुद्र में मिलने के मार्ग के बीचोबीच मौजूद इस द्वीप को कावेरी की नाभी के रूप में देखा जाता है। ये भी कहा जाता है कि इस मंदिर के लिंग को अगस्त्य मुनि ने 6000 साल से भी पहले यहाँ प्राण-प्रतिष्ठित किया था। ये लिंग बालू और उस समय में मिलने वाले कुछ खास पारंपरिक पदार्थों के मिश्रण से बनाया गया है।

भौतिक रूप से ये लिंग अभी भी वैसा ही है और ऊर्जा की दृष्टि से विस्फोटक है। हालांकि ये 6000 साल से भी ज्यादा पुराना है, पर ऐसा महसूस होता है जैसे इसे कल ही प्राण-प्रतिष्ठित किया गया हो। सामान्य रूप से ये माना जाता है कि अगस्त्य मुनि ने अपना सूक्ष्म शरीर और अपनी उर्जायें इसी स्थान पर छोड़े थे। ये कहा जाता है कि उन्होंने अपना मानसिक शरीर या मनोमय कोष मदुरै के पास चतुरगिरी पर्वत पर छोड़ा और फिर वे, कार्तिकेय की मदद से, अपने भौतिक शरीर को कैलाश पर ले गये, जहाँ शिव थे। वहाँ पहुँच कर उन्होंने अपना भौतिक शरीर छोड़ा। ये सब, निश्चित ही, बहुत भव्य ढंग का काम था।

अगस्त्य कावेरी को कई तरह से एक जीवित शरीर की तरह मानते थे, और उन्होंने उसका नाभी केंद्र नट्टत्रीश्वर में इस तरह स्थापित किया कि ऊपर और नीचे, दोनों तरफ, ऊर्जा का प्रवाह सही ढंग से हो। हमारी भारत भूमि की संस्कृति का ये महत्वपूर्ण पहलू है कि टिके रहना और संपन्नता पाना ये जीवन के उद्देश्य नहीं हैं, ये तो बस परिणाम हैं। जीवन का उद्देश्य हमेशा ही मनुष्य का खिलना, पूर्णता को पाना रहा है। बहुत से महान जीवों ने अपनी ऊर्जाओं का इस तरह, खास ढंग से, निवेश किया जिससे मनुष्य का विकास हो, और उसे व्यक्तिगत स्तर पर पूर्णता पाने में सहायता मिले। उन्होंने जरूरी ऊर्जा प्रणालियाँ बनायीं और हर चीज़ को उसके लिये एक संभावना बनाया, नदियों को भी।