जय गुरु देव
समय का जगाया हुआ नाम जयगुरुदेव मुसीबत में बोलने से जान माल की रक्षा होगी ।
परम सन्त बाबा उमाकान्त जी महाराज, उज्जैन (मध्य प्रदेश)
अपने स्वाभिमान को सदैव ऊँचा रखें (Apane Svaabhimaan Ko Sadaiv Ooncha Rakhen)

अपने स्वाभिमान को सदैव ऊँचा रखें | always keep your self esteem high

आपने भी देखा होगा, बड़े शहरों में सार्वजनिक स्थलों पर कुछ भिखारी अपने कटोरे में साधारण बॉल पैन, रिफिल, पेंसिल, पॉकेट साइज कंघा या अन्य कोई छोटी-मोटी चीजें रखकर बैटते हैं।

एक सज्जन ऐ भिखारी के कटोरा में ऐ दो रूपए का सिक्का डालकर वहीं खड़े-खड़े उसके बारे में सोचने लगे और कुछ क्षण बाद वह आगे चलने को मुड़े ही की वह भिखारी बोला,

'बाबू साब! टापने दो रूपये का सिक्‍का तो कटोरा में डाला दिया, पर उसमें रखी पैंसिल या रिफिल आपने नहीं ली।

आपको जो पसंद हो, उठा लीजिए साब!' सज्जन बोले- 'भई, मैंने तो भिखारी समझकर मुम्हें सिक्का दिया है।'

'नहीं, बाबू साब!' उसके बदले कुछ तो ले लीजिए, भले ही पचास पैसे की हो।

अब वह सज्जन असमंजस में पड़ गए कि वह भिखारी है या दुकानदार! और उसकी ओर मुस्क्राते हुए देखने लगे।

भिखारी बोला - साहब, हालात ने मुझे भिखारी जरूर बना दिया है, लेकिन मेरा थोड़ा-सा आत्म-सम्मान अब भी बचा है।

अगर आप सिक्‍के के बदले कुछ भी ले लेंगे तो मुझे कम-से-कम इतना संतोष रहेगा कि मिखारी होने के बावजूद मैंने अपना स्वाभ्मिन नहीं खोया है।'

यह सुनकर उस सज्जन की आँखें भर आईं।

उन्होंने अपने पर्स से 100 - 100 रूपए के दो नोट निकालकर उस मिखारी के हाथ में दिए और कटोरे में रखा सारा सामान (जो 50 रूपए से ज्यादा मूल्य का नहीं था) लेकर

उससे पूछा - 'भईया दो सौ रूपए कम तो नहीं हैं ?

वह भिखारी कृतज्ञ होकर रूंधे कंठ से बोला -'साहब, मैं आपका शुक्रिया किन शब्दों से अदा करूँ ?

आपने तो दरिद्रनारायण के रूप में आकर मेरे स्वाभिमान को फिर से ऊँचा कर दिया है।

यह तो मेरा जीवन बदल देगा।

मैं आज ही इन रूप्यों से सुबह और शाम का अखबार बेचना शुरू कर दूँगा और फिर भिखारी बनकर कभी नहीं जिऊंगा।'

निष्कर्ष :

प्रत्येक मनुष्य में आत्म-सम्मान की भावना होती है-किसी में कम तो किसी में ज्यादा| एक संत ने मुझे बताया-'यह जीवन बार-बार नहीं मिलता है। अब समय है मनुष्य उस चीज को पकड़े जो उसके भीतर है और फिर उसे समझने की कोशिश करे।

अपने हृदय की प्यास बुझाए ताकि जीवन में शांति आ सके। इसका सार यह है कि हम पहले खुद को जानें, अपनी पहचान करें और फिर खुद को सही रास्ते पर लाकर आनंद से जिएं |