इस ब्रह्माण्ड में कहीं कोई बात हो और वह नारद जी के कानों में पड़ जाए और उसका प्रचार न हो, यह कदापि संभव नहीं है।
उन्हें तो संचार तंत्र का आदि गुरु कहना अधिक उपयुक्त होगा।
बैकुण्ठलोक से चलकर नारद जी सीधे मथुरा के राजा अत्याचारी कंस के पास पहुंचे। कंस ने नारद जी का समुचित आदर-सत्कार किया और उनके दर्शनों के लिए आभार प्रकट किया। कुछ पल शांत रहने के बाद नारद जी ने कंस से कहा - राजन! अब अत्याचार करना बंद कर दो, क्योंकि तुम्हारा वध करने के लिए तुम्हारी बहन देवकी के गर्भ से आठवीं संतान के रूप में स्वयं नारायण अवतार लेने वाले हैं।
यह सुनकर कंस क्रोधित होकर बोला - यदि ऐसा हुआ तो मैं अपनी बहन देवकी को ही मार डालूंगा।
नारद जी ने उसे समझाते हुए कहा - राजन! मूर्खता मत करो। अभी से बहन की हत्या पाप अपने सिर पर क्यों लेते हो ? व्यर्थ में लोक निंदा के पात्र बनने से क्या लाभ ? जब आठवाँ बालक होगा, तब उसका चुपके से वध कर देना। सभी बालकों को मारने से तुम्हें पाप लगेगा।
ठीक है देवर्षि! आप जैसा कहते हैं मैं वैसा ही करूंगा। कंस ने उत्तर दिया। लेकिन उसी समय कंस के मन में नारद जी ने शंका और डाल दी।
उन्होंने एक कमल का फूल मांगकर उसे दिखते हुए कहा - राजन! इस कमल के फूल को देखिए, इसकी पंखुड़ियों को कहीं से भी गिना जा सकता है। फिर यह कैसे पता चलेगा कि देवकी का कौन-सा पुत्र आठवां होगा ?
यह सुनकर कंस सोच में पड़ गया, यह तो आप ठीक कहते हैं नारद जी। फिर तो मुझे देवकी के सारे बच्चों को मरवाना होगा।
नारद जी ने उसे चेतवानी देते हुए कहा - मरवाना नहीं मारना होगा।
दूसरे पर भरोसा करना ठीक नहीं है राजन। जो काम करो, अपने हाथों से करना। क्या पता कहीं चूक हो जाए तो फिर तुम्हें पछताना पड़ेगा ?
एक बार यदि देवकी की आठवीं संतान का जन्म हो गया तो फिर तुम्हें कोई नहीं बचा सकेगा ?
कंस बोला - आप ठीक कहते हैं देवर्षि! आप मेरे हितैषी हैं। मेरे ही क्या समस्त असुरों के आप हितैषी हैं तभी तो हम सभी आपको इतना मान करते हैं।
नारायण-नारायण ठीक कहते हो राजन! नारद तो सबका भला चाहता है। लोक-कल्याण ही मेरा लक्ष्य है और समय रहते सबको सचेत रहना मेरा धर्म है। कहते हुए नारद जी वहां से विदा हो गए।
नारद जी के उकसाने पर कंस ने देवकी के छः बालकों की निर्मम हत्या कर डाली। उसके पापों का घड़ा भरता चला गया। भगवान विष्णु के आदेश से योगमाया ने देबकी के सातवें गर्भ को रोहिणी की कोख में स्थापित कर दिया और देवकी के गर्भपात की सूचना कंस को दे दी गई। रोहिणी के गर्भ से बालक 'बलराम' का जन्म हुआ।
देवकी के आठवें गर्भ में स्वयं नारायण अवतरित हुए।
तब योगमाया ने गोकुल गाँव की गोपी यशोदा की नवजात पुत्री से देवकी के पुत्र को बदल दिया। वासुदेव नेयह कार्य स्वयं किया।
आठवीं संतान पुत्री के रूप में देखकर क्रूर कंस ने निर्ममता पूर्वक उस कन्या को पत्थर की शिला पर पटकना चाहा, लेकिन वह बिजली की तरह चमकी और आकाश में दुर्गा के रूप में प्रकट होकर बोली - अरे दुर्बुद्धि कंस! तू अकारण मुझ बालिका का वध करना चाहता था। तुझे मरने देवकी का आठवां पुत्र जन्म ले चुका है। अब स्वयं काल भी तुझे नहीं बचा पाएगा।
आकाशवाणी सुनकर कंस आग-बबूला हो गया। उसने अपने सहकर्मी प्रलंभ और केशी दैत्यों को बुलाकर उसी दिन जन्मे अपने राज्य के सभी बालकों को मार डालने का आदेश दे दिया। परन्तु वह यशोदा की गोद में खेल रहे बाल कृष्ण तक नहीं पहुंच पाया।
कंस द्वारा किए गए तरह-तरह के उपाय भी कृष्ण को, स्वयं नारायण के अवतार थे, कोई क्षति नहीं पहुंचा सके। धीरे-धीरे श्रीकृष्ण और अवतार थे, कोई क्षति नहीं पहुँचा सके।
धीरे-धीरे श्रीकृष्ण और बलराम जी किशोरी अवस्था में पहुंचे और जब कंस के अत्याचार बहुत बढ़ गए, तब श्रीकृष्ण ने अत्याचारी कंस को सिंहासन से खींच कर मार डाला।
आकाश से पुष्प वर्षा होने लगी और वाद्ययंत्र बज उठे नारद जी ने भी वीणा पर स्वरों को छेड़ते हुए अपने आराध्य देव श्री नारायण का स्तुति गान किया। |