मेरे बड़े भाई साहब उम्र में मुझसे पाँच साल बड़े हैं, मगर क्लास में केवल तीन दरजे आगे हैं ।
भाई साहब नवीं कक्षा में फेल हो गए, ।
तालीम जैसे महत्त्वपूर्ण मामले में वह जल्दबाजी से काम लेना पसंद नहीं करते थे ।
इस भवन की बुनियाद खूब मजुबूत डालना चाहते थे, जिससे उस पर आलीशान महल बन सके।
एक साल का काम दो साल में करते थे ।
कभी-कभी तीन साल भी लग जाते थे भाई साहब स्वभाव से बड़े अध्ययनशील थे ।
हरदम किताब खोले रहते और शायद दिमाग को आराम देने के लिए कभी कॉपी पर, कभी किताब के हाशियों पर चिड़ियों, कुत्तों, बिल्लियों की तस्वीरें बनाया करते थे ।
लेकिन हरदम मुझे नसीहत और फज़ीहत देने को भाई साहब तत्पर रहते थे ।
जब कभी मुझे बाहर खेलते देखते तो अपनी नसीहत झाड़ने लगते- मेरे फेल होने पर न जाओ,
मेरे दर्जे में आओगे तो दाँतों पसीना आएगा, जब अल्जबरा और जामेट्री के लोहे के चने चबाने पड़ेंगे और इंगलिस्तान का इतिहास पढ़ना पड़ेगा।
बादशाहों के नाम ही याद रखना कठिन, आठ-आठ हेनरी हो गुजरे हैं, हेनरी सातवें की जगह हेनरी आठवाँ लिखा, तो सब नंबर गायब सफाचट !
सिफूर भी न मिलेगा , हो किस ख्याल में 2 दर्जनों तो जेम्स हुए हैं, दर्जनों विलियम , कोड़ियों चार्ल्स ! दिमाग चक्कर खाने लगता है ।
इन अभागों को नाम भी न जुड़ते थे-दोयम, सोयम, चहारम, पंचम लगाते चले गए ।
मुझ से पूछते तो दस लाख नाम बता देता ।
“और जामेट्री तो बस खुदा की पनाह ! अबज की जगह अजब लिखा और नंबर गायब !
कोई इन निर्दयी मुमतहीनों से नहीं पूछता कि आखिर अ ब ज और अ ज ब में फर्क कया है, व्यर्थ की बात के लिए क्यों छात्रों का खून करते हो ?
दाल-भात-रोटी खाई या भात-दाल-रोटी , इसमें कया फर्क है ?
और इसी रटन्त का नाम शिक्षा रख छोड़ा है और आखिर इन बेसिर-पैर की बातों के पढ़ने से फायदा 2”
सालाना इम्तहान हुआ, भाई साहब फिर फेल हो गए ।
मैं दर्जे में अव्वल नंबर पास हुआ । मुझे किताबों का कीड़ा बनना या भाई साहब की तरह किताबें लिए बैठे रहना पसंद न था ।
खेलने में ध्यान लगा रहता था ।
मुझे ख्याल था कि अब शायद भाई साहब की हेकड़ी कम हो जाए ।
पर नहीं , एक शाम गुल्ली-डंडा खेलने के बाद जब मैं देर से लौटा तो भाई साहब की नसीहत और फृजीहत फिर शुरू हो गई देखता हूँ,
इस साल दर्जे में अव्वल आ गए तो तुम्हें दिमाग हो गया है, मगर भाईजान, घमंड तो बड़े-बड़ों का नहीं रहा , तुम्हारी क्या हस्ती है ?
महज इम्तहान पास कर लेना कोई चीज नहीं , असल चीज है बुद्धि का विकास !
रावण, शैतान, शाहेरूम कितनों ने अभिमान किया, पर सब मिट गए !
तुम समझते हो अपने दम पास हुए हो, अंधे के हाथ बटेर लग गई, मगर बटेर बार-बार हाथ नहीं लगती ।"
फिर सालाना इम्तहान में भाई साहब फेल हो गए और मैं फिर क्लास में अव्वल आया ।
मेरी ही चाल रही, भाई साहब भी अपनी टेक पर डटे रहे ।
अब मैंने समझा था कि भाई साहब की नसीहत और फृजीहत की आदत छूट जाएगी ।
पर नहीं, ऐसा न होना था, न हुआ ।
एक दिन मैं एक कटी पतंग के लूटने में दौड़ा जा रहा था कि सामने से भाई साहब आ गए ।
मेरा हाथ पकड़ लिया और बोले - “इन बाजारी लौंडों के साथ धेले के पतंग के लिए दौड़ते तुम्हें शर्म नहीं आती ?
कुछ तो अपनी पोजीशन का ख्याल करो , अब तुम आठवें दर्ज में, मुझसे केवल एक दर्जा कम हो !
मैं तुमसे पाँच साल बड़ा हूँ ।
दर्ज पास करने से क्या होता है ?
चाहे मुझसे आगे निकल जाओ, पर तजुरबा कहाँ से लाओगे ?
अनुभव ही आदमी को बड़ा बनाता है ।
मेरे देखते तुम बेराह न चलने पाओगे !
संयोग से उसी वक्त एक कटा पतंग हमारे ऊपर से गुजरा !
भाई साहब ने उछलकर डोर पकड़ ली और बेतहाशा सबसे आगे दौड़ भागे ! |