जय गुरु देव
समय का जगाया हुआ नाम जयगुरुदेव मुसीबत में बोलने से जान माल की रक्षा होगी ।
परम सन्त बाबा उमाकान्त जी महाराज, उज्जैन (मध्य प्रदेश)
भगवान से क्या मांगे (दो भिखारी! एक अँधा, एक लंगड़ा) (Bhagavaan Se Kya Maange Do Bhikhaaree! Ek Andha, Ek Langada)

भगवान से क्या मांगे (दो भिखारी! एक अँधा, एक लंगड़ा) - What to ask from God (Two beggars! One blind, one lame)

एक विदेश के धर्म साहित्य की बोधकथा है जो सोचने लायक है | देश छोटा हो या बड़ा, विकसित हो या अविकसित, देवस्थान और मंदिर में भक्त की अवर जवर तो रहती ही है| लोग ऐसे देवस्थान में जाते हैं और भगवान के पास कुछ रखके अपनी समस्या का समाधान करने के लिए सहायता मांगते हैं|

मंदिर में आने वाले लोग थोड़े लगनीशील होते हैं| ऐसे देवस्थान के बाहर ना जाने कितने लोग भीख मांगते रहते हैं| जिसको यह श्रद्धालु लोग कुछ न कुछ देके जाते हैं| इसीलिए मंदिर के बाहर भिखारीयों की भीड़ हमेशा रहती है|

ऐसे ही एक देवस्थान की बात है| वहां एक अँधा और दूसरा लंगड़ा भिखारी रोज आते थे| जिस को जो मिलता उसको लेके अपने आश्रय स्थान में जाकर रात्रि गुजारा करते थे| रोज का साथ होने से दोनों भिखारियों के बीच अच्छी मित्रता हो गई थी और दोनों आपस में सुख दुःख की बातें भी करने लगे थे|

बातचीत में ऐसा लगा कि हम दोनों एक ही जगह भीख मांगते है इसलिए हमारे बीच में भीख बँट जाती है, उसके बदले अगर हम अलग अलग मंदिर में भीख मांगने जाये तो अच्छी भीख मिलेगी| इस बात को ध्यान में रखकर उन्होंने अलग अलग मंदिर में जाके भीख मांगने का निर्णय लिया और शाम को जो भीख मिले उसका बंटवारा करना ऐसा तय हुआ |

थोड़े दिन दोनों भिखारी अलग अलग भीख मांगते रहे फिर उनको ऐसा लगा कि इस तरह से भीख मांगने से उनकी आवक में अच्छा बढ़ावा हो रहा था| फिर तो दोनों एक छोटी सी झोपड़ी में साथ में रहने लगे| सुबह होते ही दोनों साथ में निकलते| लंगड़ा अंधे को एक जगह पे बिठा देता और वह दूसरी जगह भीख मांगने निकलता|

इस तरह से दोनों की आवक बढ़ गई | उन्होंने अब धंधा अच्छा चले, उसके लिए एक योजना बनाई | पहले तो वह सिर्फ दो ही मंदिर में बैठते पर अभी उन्होंने तय किया कि गाँव के अन्य मंदिरों पर जाकर भी भीख मांगनी चाहिए|

लंगड़े भिखारी को लगा कि अंधे को ज्यादा भीख मिल रही है| इसलिए वो उसको सहारा देके दूसरे बड़े मंदिरों में बिठा के आ जाता| लंगड़ा भिखारी थोडा सशक्त था, इसलिए वह जल्दी से घूम कर यहाँ वहाँ से खाना लाकर अंधे भिखारी को देके जाता| रोज रात को खाने के बाद दोनों दिनभर हुई कमाई का बंटवारा करते थे| ऐसे दोनों के पास बचत होने लगी थी|

थोड़े दिन तो सब बराबर चला पर कुछ दिन बाद दोनों के मन में शंका होने लगी| विश्वास से शुरू हुई भागीदारी एक दूसरे के प्रति अविश्वास से डगमगाने लगी| इस तरह दोनों के मन में पाप घुस गया और दोनों दिन भर की हुई कमाई में से थोड़ी कमाई दिखाते बाकि की छुपा देते थे|

अंत में दोनों की आवक घटने लगी इसलिए दोनों भिखारी एक दूसरे के ऊपर आक्षेप करने लगे| कोई दिन तो दोनों के बीच मारामारी भी होती और कभी कभी तो गाली-गलौज भी होती थी और ऐसे ही दोनों के सुख के दिन खत्म हो गए|

तुरंत तो अलग होना संभव नहीं था इसलिए दोनों ने साथ रहना चालू रखा पर दोनों के मन में एक दूसरे के प्रति द्वेष जाग उठा था| इस संजोगो के दौरान उन दोनों भिखारी को विचार आया कि हम लोगों से भीख मांगते है, उसकी जगह क्यूँ न भगवान से मदद मांगे| भगवान सबको देते है तो हमको भी ना नहीं बोलेंगे|

अगर भगवान को प्रार्थना करेंगे तो वह अवश्य प्रसन्न होंगे और हमारा दुख दूर करेंगे | अब दोनों मंदिर में जाके रोज भगवान से प्रार्थना करते थे| उन दोनों की भावभरी भक्ति को देखकर भगवान प्रसन्न हुए और एक रात को स्वप्न में आकर जो मांगना हो वो मांगने को बोला|

भगवान को तो यकीन था कि लंगड़ा पैर और अँधा आंखे मांग लेगा ताकि दोनों पूरी तरह से स्वावलंबी होकर अपने पैरों पर खड़े रह सकें| फिर उनको एक दूसरे की सहायता की जरूरत नहीं रहेगी| ऐसे वह लोग ख़ुशी से अपना पूरा जीवन गुजार सकेंगे |

अब जरा विचार करो कि दोनों भिखारी ने भगवान से क्या माँगा होगा? सामान्य रित से हमको मानने में न आये ऐसा दोनों ने भगवान से माँगा| लंगड़े भिखारी ने माँगा कि हे भगवान ! इस अंधे भिखारी को लंगड़ा बना दो ताकि वह ठिकाने पे आ जाये और अंधे भिखारी ने माँगा कि हे भगवान ! इस लंगड़े को मेरी तरह अँधा बना दो ताकि उसकी अक्ल ठिकाने आ जाये|

भगवान तो तथास्तु कहकर अन्तर्ध्यान हो गए पर दोनों भिखारी अंधे और लंगड़े होकर गाँव में भीख मांगने लगे| कहावत है कि इस प्रसंग के बाद भगवान ने वरदान देना ही बंद कर दिया और सबको अपने अपने भाग्य और कर्म पे छोड़ दिया|

इस तरह भगवान तो प्रसन्न हुए पर भिखारियों से माँगना नहीं आया इसलिए दोनों भीख मांगते और भटकते ही रह गए |

विश्वास से ही दुनिया चल रही है| एक दूसरे के प्रति इतना द्वेष कभी नहीं रखना चाहिए क्यूंकि यही द्वेष हमारी बुद्धि का सर्वनाश करता है | इससे हम पहले से भी ज्यादा कमजोर हो सकते हैं|