leather rabbit | Hindi Stories
क बार गुरु रविदास की बुआ जब उनसे मिलने के लिए आईं तो उनके लिए एक सुंदर चमड़े का खरगोश ले आईं। उस खिलौने को पकड़कर, चारपाई पर बैठकर, बालक रविदास खेल रहे थे। खेलते-खेलते अपने चरण कमलों से वे उस खरगोश को दूर धकेलने लगे, जैसे उसे दौड़ने का संकेत दे रहे हों। इस दृश्य को देखकर बुआ और घर के सदस्य बहुत प्रसन्न हो रहे थे। जब बालक ने तीसरी बार पुन: उस चमड़े के बेजान खरगोश को अपने चरणों से दूर धकेला तो वह जीवंत हो उठा और वह सचमुच खरगोश बनकर आगे की ओर भागा। बालक को यह दृश्य देखकर अत्यंत प्रसन्नता हुई, परंतु उनके घरवाले इस दृश्य को देखकर अत्यंत आश्चर्यचकित हुए, फिर वह खरगोश उछल-कूद करते हुए गुरु रविदास के समीप ही बैठ गया।
बालक रविदास उस खरगोश को देखकर बहुत प्रसन्न हो रहे थे। उन्होंने पुन: उसे अपने चरण कमलों से धकेला, परंतु फिर वह खरगोश घरवालों के सामने से उछलते हुए बाहर की ओर दौड़ गया। इस बीच बालक रविदास के फूफा जब बाहर से आए तो सारा वृत्तांत सुनकर आश्चर्यचकित रह गए उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था, क्योंकि उन्होंने स्वयं अपने हाथों से गुरुजी के लिए वह चमड़े का खिलौना बनाया था। |