जय गुरु देव
समय का जगाया हुआ नाम जयगुरुदेव मुसीबत में बोलने से जान माल की रक्षा होगी ।
परम सन्त बाबा उमाकान्त जी महाराज, उज्जैन (मध्य प्रदेश)
डकैत झुक गया गुरुदेव के चरणों में (Dakait Jhuk Gaya Gurudev Ke Charanon Mein)

डकैत झुक गया गुरुदेव के चरणों में - The dacoit bowed at the feet of Gurudev.


गुरुदेव रविन्द्रनाथ टैगोर जब भी रचना कर्म में जुटते थे,

तो पूरे मन-प्राण से तन्मय होकर लिखते थे ।

उस समय उन्हें कतई यह भान नहीं होता था कि आसपास क्या हो रहा है ?

बाहर कितना भी शोरगुल हो अथवा घर में कैसी भी चहल-पहल हो।

वे इन सभी से बेखबर रहते और उनकी लेखनी अपना काम करती रहती।

एक बार शांति निकेतन के अपने कमरे में गुरुदेव बैठे थे और कविता लिख रहे थे।

तभी कमरे में एक डाकू घुस आया और गुरुदेव के बिल्कुल पास जाकर जोर से चिल्लाया- 'सुनो, सब सोना-चांदी मुझे दे दो वरना मैं तुम्हें मार डालूंगा।

चूंकि यह बोलने वाला उनके निकट आकर जोर से बोला था, इसलिए गुरुदेव ने उसकी ओर दृष्टि उठाकर देखा।

वह एक डकैत था, जो हाथ में चाकू लिए खड़ा था।

गुरुदेव ने पुनः दृष्टि झुकाकर कविता लिखना आरंभ किया और धीरे से कहा- 'भाई मारना ही चाहते हो तो मार लेना,

किंतु तनिक रुक जाओ, मन में एक बहुत ही सुंदर भाव आ गया है, उसे कविता के माध्यम से पूर्ण कर लेने दो।

डकैत रुक गया और गुरुदेव उस भाव की साधना में ऐसे डूबे कि याद ही नहीं रहा कि उनकी हत्या करने वाला उनके इतने निकट खड़ा है।

उधर डकैत चकित था कि यह कैसा व्यक्ति है, जो अपनी मृत्यु से जरा भी न डरकर कविता लिख रहा है।

जब गुरुदेव की कविता समाप्त हुई, तो उन्होंने डकैत को ऐसे संतुष्ट भाव से देखा मानों कह रहे हों कि अब मैं खुशी से मर सकता हूं।

यह देखकर डकैत ने चाकू फेंक दिया और पश्चात्ताप करते हुए गुरुदेव के चरणों में झुक गया।

गुरुदेव ने उसे क्षमा कर दिया।

सार यह है कि आप अपने कार्यों और कर्तव्यों को एकाग्रचित होकर करते हैं तो वह कार्य उत्कृष्ट कोटि का होने के साथ-साथ अनेक विपरीत अवस्थाओं को अनुकूलता में बदल देता है।