जय गुरु देव
समय का जगाया हुआ नाम जयगुरुदेव मुसीबत में बोलने से जान माल की रक्षा होगी ।
परम सन्त बाबा उमाकान्त जी महाराज, उज्जैन (मध्य प्रदेश)
दो बहादुर दोस्त (Do Bahaadur Dost Kahani)

एक छोटे से गाँव में वीर और जय नाम के दो दोस्त रहते थे। दोनों सेना में भर्ती होकर देश की सेवा करना चाहते थे।

एक समय आया जब दोनों ने अपना सपना पूरा किया और सेना में भर्ती हो गए..

बहुत ही जल्द..उन दोनों को भी देश की सेवा करने का मौका भी मिल गया।

जल्द ही..युद्ध छिड़ गया और दोनों को राष्ट्र की सेवा के लिए युद्ध में भेज दिया गया।

वहां जाकर दोनों ने बहादुरी से दुश्मनों का सामना किया।

लड़ाई के दौरान जय बुरी तरह घायल हो गया।

जब वीर ने अपने दोस्त जय के घायल होने के बारे में सुना, तो वह खुद को नियंत्रित नहीं कर पाया और अपने घायल दोस्त को बचाने के लिए तेजी से भागा।

अचानक उनके कप्तान ने उसे रोका और कहा, “अब वहां जाने का कोई मतलब नहीं है।”

जब तक तुम वहां पहुंचोगे, तब तक तुम्हारा दोस्त वीर गति को प्राप्त हो गया होगा।, और तुम भी अपनी जान को जोखिम में डालोगे।”

लेकिन वीर अपने कप्तान की बात से बिलकुल सहमत नहीं था।

उसने कप्तान की बात को नजरअंदाज कर दिया और अपने घायल दोस्त को बचाने के लिए आगे पहुंच गया।

जब वीर वापस अपने शिविर में पहुँचा, तो उसके कंधे पर अपने मित्र जय को लाया। लेकिन उसका दोस्त अब जीवित नहीं था।

यह देखकर कप्तान ने कहा, “मैंने तुमसे कहा था कि वहां जाने का कोई फायदा नहीं है। तुम अपने मित्र को सुरक्षित नहीं ला सके। तुम बेकार ही वहां गए।

वीर ने उत्तर दिया, “नहीं साहब, मैं उसे लेने के लिए वहाँ व्यर्थ नहीं गया।

जब मैं उसके पास पहुँचा तो वो मुस्कुराया और मेरी तरफ देखा, उसने कहा- मेरे दोस्त, मुझे विश्वास था कि तुम मेरे लिए जरूर आओगे..

..ये मेरे लिए उसके आखिरी शब्द थे।

मैं उसे बचा तो नहीं सका। लेकिन उसे मुझ पर और हमारी दोस्ती पर जो विश्वास था, मैंने उस विश्वास को बचा लिया।”

कहानी से सीख !
दोस्ती की नींव विश्वास पर टिकी है, एक दूसरे के प्रति जितना ज्यादा विश्वास होता है दोस्ती उतनी ही पक्की होती है। भले ही खुद टूट जाना लेकिन अपने दोस्त का विश्वास कभी टूटने नहीं देना।

कौन किससे चाहकर दूर होता है, हर कोई अपने हालातों से मज़बूत होता है,
हम तो बस इतना जानते हैं, हर रिश्ता मोती और हर दोस्त कोहिनूर होता है।