जय गुरु देव
समय का जगाया हुआ नाम जयगुरुदेव मुसीबत में बोलने से जान माल की रक्षा होगी ।
परम सन्त बाबा उमाकान्त जी महाराज, उज्जैन (मध्य प्रदेश)
दोस्त की कुर्बानी (Dost Kee Kurbaani Kahani)

एक राज्य में श्याम नामक युवक रहा करता था. एक बार उसने राजा के किसी आदेश की अवहेलना कर दी. अपने आदेश की अवहेलना राजा को कतई गंवारा नहीं थी. जो भी उसके आदेश की अवहेलना करता, दंड का पात्र बनता. श्याम को भी सैनिक बंदी बनाकर राजा के समक्ष ले गये. भरे दरबार में राजा ने उसे मृत्युदंड सुनाया.

अपने मृत्युदंड पर श्याम बोला, “महाराज! आपके द्वारा दिया गया मृत्युदंड शिरोधार्य है. किंतु मृत्यु पूर्व मेरा आपसे एक निवेदन हैं और वह यह है कि मुझे कुछ समय प्रदान किया जाये. ताकि अंतिम बार मैं अपने परिवार से मिल सकूं.”

राजा ने एक सिरे से उसका यह निवेदन अस्वीकार कर दिया, “तुम पर कैसे विश्वास किया जा सकता है? यहाँ से जाने के उपरांत तुम वापस नहीं लौटे तो? तुम्हारा यह निवेदन स्वीकार योग्य नहीं है.”

राजा के ये कहते ही राजदरबार में उपस्थित प्रजा में से एक युवक सामने आया और बोला, “महाराज! मेरा आपसे निवेदन है कि श्याम को उसके परिवार से मिलने जाने दिया जाये. उसके वापस आते तक मुझे बंदी बनाकर रख लिया जाये. यदि वह वापस न आये, तो उसके स्थान पर मृत्युदंड दे दिया जाये.”

युवक की बात सुनकर राजा आश्चर्यचकित रह गया. पहली बार ऐसा कोई व्यक्ति उसके सामने था, जो किसी अन्य के लिए अपने प्राण देने तत्पर था. राजा ने पूछा, “कौन हो युवक और इसका स्थान क्यों लेना चाहते हो?”

“महाराज, मेरा नाम कन्हैया है. मैं श्याम का मित्र हूँ. मुझे पूरा विश्वास है कि अपने परिवार से मिलकर ये अवश्य वापस आयेगा.” युवक बोला.

राजा ने सैनिकों को कन्हैया को बंदी बना लेने का आदेश दिया और श्याम को परिवार से मिलने जाने की अनुमति प्रदान कर दी. श्याम को ६ घंटे का समय दिया गया, जिसमें उसे अपने परिवार से मिलकर वापस आना था.

श्याम घोड़े पर सवार होकर अपने परिवार से मिलने पहुँचा और सबसे मिलकर तुरंत वापसी की राह पकड़ ली. वह समय व्यर्थ नहीं करना चाहता था. समय पर राजा के समक्ष न पहुँचने पर उसके मित्र के प्राण संकट में पड़ सकते थे. तीव्र गति से घोड़ा दौड़ाते हुए वह राजमहल की ओर चला आ रहा था कि एक स्थान पर वह घोड़े से गिर पड़ा और चोटिल हो गया.

इधर निर्धारित ६ घंटे पूरे हो गए. श्याम राजमहल नहीं पहुँच पाया. इस स्थिति में कन्हैया को मृत्युदंड के लिए तैयार किया जाने लगा. अपने अंतिम समय में कन्हैया ने श्याम का स्मरण किया और आँखें बंद कर ली. वह प्रसन्न था कि वह अपने मित्र के काम आ सका.

किंतु अंतिम क्षण में श्याम राजमहल पहुँच गया. वह राजा से बोला, “देरी के लिए क्षमा महाराज. मैं घोड़े से गिरने के कारण चोटिल हो गया था. अब मैं वापस आ चुका हूँ. कृपया मेरे मित्र कन्हैया को छोड़ दीजिये.”

श्याम का कथन सुनकर कन्हैया ऊँचे स्वर में बोला, “मित्र! तुम चले जाओ.”

श्याम बोला, “नहीं मित्र! मेरा दंड तुम कैसे भोग सकते हो? और मैं तुम ऐसा करने कैसे दे सकता हूँ? मेरा दंड है, मैं ही भोगूंगा. तुमने मेरे लिए जो किया उसके लिए मैं तुम्हारी आभारी हूँ.”

राजा श्याम और कन्हैया की मित्रता देख बहुत प्रसन्न हुआ और बोला, “ऐसी मित्रता मैंने आज तक नहीं देखी है. मैं तुम दोनों से बहुत प्रसन्न हूँ और घोषणा करता हूँ कि तुम दोनों में से किसी को भी मृत्युदंड नहीं दिया जायेगा. मैं तुम दोनों स्वतंत्र करता हूँ.”

सीख – सच्चा दोस्त वह होता है, जो हर घड़ी आप पर विश्वास करता है और आपके साथ खड़ा रहता है.