जय गुरु देव
समय का जगाया हुआ नाम जयगुरुदेव मुसीबत में बोलने से जान माल की रक्षा होगी ।
परम सन्त बाबा उमाकान्त जी महाराज, उज्जैन (मध्य प्रदेश)
दोस्ती का फर्ज (Dosti Ka Farj Kahani)

एक छोटे से शहर में रामा और तरुण नाम के दो दोस्त रहते थे। रामा अमीर परिवार से था जबकि तरुण गरीब परिवार से था।

हालॉकि दोनों की दोस्ती के बीच अमीरी और गरीबी कभी नहीं आई, दोस्ती और भी गहरी होती गई।

समय के साथ दोनों बड़े हुए और दोनों ही अपने जीवन में व्यस्त हो गए।

व्यस्त जीवन के चलते उन दोनों को एक-दूसरे से मिलने के लिए ज्यादा समय नहीं मिल पाता था।

एक दिन, तरुण बहुत बीमार हो गया और डॉक्टर ने उसे पूरी तरह से अच्छा होने तक आराम करने की सलाह दी।

जब रामा को अपने दोस्त की बीमारी का पता चला तो वह उनसे मिलने उसके घर गया।

रामा वहां ज्यादा देर तक नहीं रुका और अपनी जेब से कुछ पैसे निकाले और अपने दोस्त को दे दिए और वहां से चला गया।


तरुण को रामा का व्यवहार बहुत बुरा लगा, वो चाहता था की रामा कुछ समय तो उसके पास बैठता, उसने सोचा जब ठीक हो जायूँगा तो काम करके अपने दोस्त के पैसे लोग दूंगा।

समय बीता और तरुण ठीक हो गया, और काम पर जाने लगा।

पैसा कमाना मुश्किल तो था पर ज्यादा मेहनत करके उसने रोज़ थोड़े थोड़े पैसे बचाना शुरू किया जिससे वो अपने दोस्त रामा के पैसे लोटा सके।

एक दिन जब तरुण ने अपने दोस्त को देने के लिए पैसे पूरे कर लिए तो वह देने के लिए रामा के पास गया।

रामा ने दरवाज़ा खोला अपने दोस्त तरुण को देख कर बोला, चलो अच्छा है ठीक हो गए।

तरुण के पैसे लौटने पर रामा ने अपनी जब में रख लिए और बाहर जाने की कहा कर तरुण को दरवाजे से ही रवाना कर दिया।

तरुण ने अपने दोस्त के बदले व्यवहार को देखा तो उसे बहुत बुरा लगा।

कुछ समय बीते , रामा बीमार हो गया और डॉक्टर ने उसे आराम करने की सलाह दी।

जैसे ही तरुण को रामा की बीमारी की खबर मिली, वो अपना सारा काम जस का तस छोड़ अपने दोस्त से मिलने के लिए चल दिया।

रामा अपने दोस्त को देख कर खुश हुआ,

तरुण अपने दोस्त रामा के ठीक होने तक उसके साथ रहा।

कुछ दिन बाद रामा तरुण से मिलने उसके घर गया और बोला, “मेरे दोस्त, मुझे बहुत अपराधबोध हो रहा है। जब तुम बीमार थे तब मैंने बस कुछ पैसे दिए और चला आया, और वो पैसे भी तुमने वापस कर दिए।

लेकिन जब मैं बीमार हुआ तो तुम पूरे समय मेरे साथ रहे और मेरा ख्याल रखा, तुमने तो मुझे पैसे वापस कर दिए पर मैं तुम्हारा उपकार कैसे वापस करू। मुझे माफ़ कर दो मेरे दोस्त।

तरुण ने रामा को गले से लगा लिया और कहा, “बस दोस्त, तुम्हें यह एहसास हो गया की पैसा ही सब कुछ नहीं है, और आज मुझे बहुत खुशी है कि तुम फिर से मेरे पुराने वाले दोस्त बन गए।

कहानी से सीख !
दोस्ती अमीरी गरीबी, रूप रंग, जात पात नहीं देखती। बल्कि सच्ची दोस्तों तो दोस्त के प्रति परवाह, और स्नेह को देखती है।