जय गुरु देव
समय का जगाया हुआ नाम जयगुरुदेव मुसीबत में बोलने से जान माल की रक्षा होगी ।
परम सन्त बाबा उमाकान्त जी महाराज, उज्जैन (मध्य प्रदेश)
गुहस्थ आश्रम (Guhastha Ashram Kahani)

नगर तथा बस्ती से दूर था आश्रम वह जहां ब्रह्मचारी अपने परम हितैषी गुरु की शरण में शिक्षा-दीक्षा ले रहा था | गुरुकुल की शिक्षा प्रणाली ही ऐसी होती है कि ब्रह्मचय का पालन, ब्रह्मचर्य ही जीवन यापन और अध्ययन मन से निदिव्यासन ही वहां का जीवन होता है।

मात्रवत परदारेषु पर द्रव्येषु लोस्टवत

की शिक्षा ही उनके रोम रोम में भरी रहती है कामिनी कंचन जगत को हर भांति फैंसाये हुए है, उन ब्रहमचारियों को उनके सत्तगुरु की असीम दया से छू तक नहीं पाती ब्रहमचारी अपने गुरु का प्यारा शिष्य था । सतगुरु की उस पर विशेष कृपा थी । गुरुदेव ने सोचा इसे जगत की माया जाल में फसे जीवों का अनुभव कराना चाहिये जिससे यह उनसे सतर्क होकर सदा के लिए महामाया के अकाट्य अस्त्र कामिनी और कंचन से बच जाय गुरुदेव ने ब्रह्मचारी को बुलाकर कहा आस-पास के नगर में जाकर घूम आओ । भविष्य के तुम्हारे जीवन धारा को बनाने में यह वह ब्रह्मचारी जगत का अनुभव बड़ा ही हितकारी होगा।

वह ब्रह्मचारी दिन भर चलकर मार्ग के दश्य तथा नगर के कोलाहल भरे वातावरण को देखता हुआ संध्या होते होते नगर पहुंचा । मार्ग की शांति तथा उसके लिये विचित्र और कूतुहलमय वातावरण की कारण वह ठगा सा एक एकात स्थान में बैठ गया | थोड़ा विश्राम, जलपान ही कर पाया था कि राज-मार्ग से खूब गाजे बाजे के साथ एक जुलुस चला आ रहा थां उसने कभी ऐसा दृश्य देखा न था | फ़ौरन उठ खड़ा हुआ और पहुँचा जुलूस के पास | देखा कि अजीब प्रकार की सवारी है जिसे आठ अपने कन्धे पर उठाये हैं | उस सवारी पर युवक अजीब सी पोशाक पहने सिर पर कुछ अजीब ढंग की टोपी बाँधे बैठा है | लोग उसके पीछे पीछे खूब सज धज के साथ जा रहे हैं । आगे तरह-तरह के बाजे बज रहे हैं | ब्रहमचारी की समझ में कुछ भी न आया | उत्सुकता से उसने जुलूस में जाते हुए एक सभ्य सज्जन से पूछा यह कौन सी सवारी है

उसने बताया. - इसे नालकी कहते हैं ।
ब्रह्मचारी-- इसमें कौन बैठा है ?
सज्जन -- इसमें दूल्हा बैठा है ।
ब्रह्मचारी. -- दूल्हा किसे कहते हैं ?
सज्जन - (मन में अजीब गंवार है ) दूल्हा जो विवाह करने जाता है।
ब्रह्मचारी - विवाह किसे कहते है।
सज्जन - (खीझते हुए) विवाह स्त्री पुरुष के सम्बन्ध को कहते है।
ब्रह्माचारी - (बड़ी उत्सुकता से व्यग्र होकर) स्त्री पुरष का कैसा सम्बन्ध।

ब्रह्माचारी के इस भोले प्रश्न पर सुनने वाले सब हंस पड़े और उसके अनभिग्य भोलेपन पर तरस खाकर उसे संक्षेप में बताया कि गृहस्थ आश्रम मे प्रवेश करने के लिए यह स्त्री पुरुष का सम्बन्ध होता है । यह युवक जो सिर पर मौर बाँध कर तथा इस पोशाक में नालकी पर जा रहा है वह विवाह करके अपनी स्त्री को इसी पर लेकर लौटेगा | फिर अपने घर जाकर स्त्री के साथ आनन्द के साथ रहकर अपनी गृहस्थी चलायेगा |

ब्रह्माचारी आश्चर्य से सब देखता सुनता हुआ जुलूस के संग-संग काफी दूर तक चला गया । बारात जनवासे में पहुँची फिर विवाह हुआ | विवाह समाप्ति तथा विदाई आदि को देखकर तथा बहुत सी बातें जान सुनकर आराम करने के विचार से पास के कुए के जगत पर गया | विचार मग्न ब्रहाचारी सोचता और गुनता हुआ उसी कूयें पर लेट गया । काफी रात बीत चुकी थी । उसे नींद आ गईं |

बाराती भी जनवासे में आकर सो रहे थे । लोग उस भोले भालें ब्रहाचारी को जान गये थे क्योंकि उनके लिए ब्रह्मचारी अजीव सा लगता था और ब्रहमचारी के लिए वे लोग ब्रहमचारी ने आज जो कुछ भी देखा सुना था उसे मन ही मन गुनता सो गया था । इसीलिए उसे स्वप्न थी ऐसा ही दिखाई पड़ा । उसने देखा कि वह स्वयं दूल्हा बना है मौर बांधे हुए नालकी पर सवार है । खूब तरह-तरह के बाजे बज रहे हैं | बहुत नौकर चाकर सेवा में लगे हैं । सारा समाज उसकी नालकी के पीछे है | वह जनवासे में पहुँचा । विवाह हो रहा है । उसकी स्त्री बड़ी सुन्दर है । विवाह का कार्य समाप्त हो गया | वह स्त्री को लेकर अपने घर लौट आया । अब वह अपनी गृहस्थी बनाने में व्यस्त है । अब रात हो गई । उसने स्वप्न में देखा कि वह अपने कमरे में सोया है । रात्री में उसकी सुन्दर स्त्री उसके पास आई । वह उसकी बगल में सोना चाहती है । ब्रहाचारी बड़ी उमंग और रगग में फूला नहीं समाता है | तव तक उसकी स्त्री उससे कहती है खिसक जाइये तो मैं सोऊँ ब्रहाचारी उसी जोश में पीछे खिसका और धड़ाम से कूयें में जा गिरा । धड़ाम की आवाज तथा ब्रह्मचारी की चीख ने बारातियों को जगा दिया | लोग कूयें की ओर दौड़े | व्रहमचारी को किसी प्रकार कूयें से निकाला गया |

कफी भीड़ लग चुकी थी उस कूयें के पास ब्रह्मचारी से लोग तरह तरह को प्रश्न करते रहे | चिंतामगन ब्रहमाचाह़ी अपनी गंभीरता तथा निश्वयात्तक आवाज में लोगों से कहा की मेने स्वपन में विवाह किया तब तो क्यों कुवे में गिरना पड़ा और ये बिचारे तो सचमुच में विवाह कर रहे है तो इनकी क्या दशा होगी ? ससार के लोगों की यह दयनीय दशा हर मेने देख लिया । जिसे ये बेचारे बहुत अच्छा और सुखद समझ रहे है। उस कामिनी और कंचन क॑ महाजाल के स्मरण मात्र से तो मेरी यह दशा हो गईं । इन वेचारों का हाल भगवान ही जाने | वह तुरन्त उठा और पहुँचा अपने गुरु के आश्रम पर उसने अपने परम पूज्य गुरुदेव से सब अनुभव कह डाला उनके गुरु ने उसे समझाया - बेटा, यही संसार और संसारियों की दशा है । संसार के लोगों का सबसे बड़ा बन्धन यह पाणिग्रहण है । मनुष्य छोटा से छोटा बन्धन भी नहीं स्वीकार करता । इस पर सबसे बड़े बन्धन को बाजे बजाकर सैकड़ों के सम्मुख स्वीकार करता है

पर इसके भी नियम हैं । गृहर्थ आश्रम सर्वश्रेष्ठ आश्रम है | पर कब.? जब गृहस्थ आश्रम के सब नियम माने जांय सतगुरु के बचनों को याद कर सदा उन नियमों का पालन करते हुए, सदा साधन भजन में रत, अतिथि महात्माओं की सेवा करते हुए, एक नारी ब्रह्मचारी का विचार रखकर स्त्री को भोग की वस्तु न समझ कर, जीवन संगिनी और सहयोगी के भाव से धार्मिक सदाचारी जीवन व्यतीत करने वाले तथा ब्रह्मचर्य का निश्चित काल तक पालन करने वाले को ही गृहस्थ आश्रम सर्वश्रेष्ठ प्रतीत होगा।