जय गुरु देव
समय का जगाया हुआ नाम जयगुरुदेव मुसीबत में बोलने से जान माल की रक्षा होगी ।
परम सन्त बाबा उमाकान्त जी महाराज, उज्जैन (मध्य प्रदेश)
गुरू-भक्ति से मन की शुद्धि (Guroo-Bhakti Se Man Kee Shuddhi)

गुरू-भक्ति से मन की शुद्धि | Purification of mind through devotion to Guru


स्वामी विवेकानंद अपने छात्र-जीवन में आर्थिक विषमता से जूझ रहे थे।

एक दिन उन्होंने अपने गुरू परमहंस रामकृष्ण से कहा-'यदि आप काली माँ से प्रार्थना करेंगे, तो वह मेरे वर्तमान आर्थिक संकट दूर कर देंगी ।

' रामकृष्णजी बोले- 'नरेन, संकट तुम्हारे हैं, इसलिए तुम स्वयं मंदिर में जाकर काली मां से मांगो, वह अवश्य सुनेगी।'

यह कहकर उसे मंदिर में भेज दिया।

वहां उसने और कुछ न कहकर भमाँ मुझे भक्ति दो' कहा और फिर गुरू जी के निकट लौट आया।

उन्होंने पूछा- 'क्या मांगा ? माँ मुझे भक्ति दो' नरेन ने कहा।

“अरे, इससे तेरे संकट दूर नहीं होंगे, तू फिर से अंदर जा और मां से स्पष्ट मांगः वह गया और उसने पूर्ववत्‌ जैसा किया।

जब तीसरी बार जाने पर भी उसने काली माँ से केवल यही कहा - 'माँ मुझे भक्ति दो,' तब परमहंस जी हंसे और कहने लगे- 'नरेन।

मुझे मालूम था, तू भौतिक सुख नहीं मांगेगा, क्योंकि आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने की पूर्ण जिज्ञासा तेरे हृदय में उत्पन्न हो चुकी है और इसीलिए मैंने तुम्हें तीनों बार भक्ति मांगने के लिए ही अंदर भेजा था।

तेरे वर्तमान आर्थिक संकट का सामाधान तो मैं स्वयं ही कर सकता था।'

तात्पर्य : एक विशुद्ध गुरू अथवा भक्त के सान्निध्य में रहने से मन का शुद्धिकरण करना सरल व सहज हो जाता है।

हेनरी फोर्ड के प्रपौत्र एल्फ्रेड फोर्ड ने 'इस्कॉन' के संस्थापक क्षीत्‌ स्वामी प्रभुपाद की शिष्यता ग्रहण कर और उनके साथ भारत में कुछ महीने रहकर अपने मन की शुद्धी की थी, अर्थात्‌ अध्यात्म का बीजारोपण किया था।

बाद में स्वामीजी ने अपने शिष्य अम्बरी दास (हेनरी फोर्ड-3) को वापिस अमरीका भेज दिया था।

यह एक उत्तम उपाय बताया गया है, क्योंकि एक सच्चे गुरू के निकट उसके शिष्य का अन्तर्मन सदा बना रहता है और वे उसकी आत्म-उनन्‍नति का मार्ग-दर्शन स्वयं करते रहते हैं।

आवश्यकता इस बात की कि हम मन की शुद्धि के लिए पहले जिज्ञासु बने और फिर संत की पहचान के विवेकी बने।