जय गुरु देव
समय का जगाया हुआ नाम जयगुरुदेव मुसीबत में बोलने से जान माल की रक्षा होगी ।
परम सन्त बाबा उमाकान्त जी महाराज, उज्जैन (मध्य प्रदेश)
जब मनुष्य भक्ति मार्ग चले तो फिर उसे लोक लाज का भय त्याग देना चाहिये (Jab Manushy Bhakti Maarg Chale To Phir Use Lok Laaj Ka Bhay Tyaag Dena Chaahiye)

जब मनुष्य भक्ति मार्ग चले तो फिर उसे लोक लाज का भय त्याग देना चाहिये - When a man follows the path of devotion then he should give up the fear of public shame.

यह नजीर है सोहिदे किसी काम पर हिम्मत बांधकर लग जाते है तो वह न होने वा ली बात को भी करके दिखा देते हैं । कहते है जब फरदाह तेशा लेकर पहाड़ को चीरने लगा जब एक तेशा मरता था तो करोड़ तेशे उसके साथ कुदरत मारती थी । इस तरह से वह जवान पहाड़ को चीरने में सफल हो गया | कुदरत की तरफ से भी मदद उन्हीं के लिये उततरती है जो इरादे के मजबूत होते है | क्योंकि कामयावी और नाकामी सब आदमी के अपने इरादे और दिलेरी पर निर्भर है ।

हौसलामन्द आदमी के जोश को उभारने में धरती और आकाश की तमाम शक्ल मदद लेने के लिए तैयार खड़ी रहती हैं । उभरने वाली सख्सियत को दुनियां की कोई भी ताकत दबा नहीं सकती और निकम्मे तथा आलसी आदमी की संसार की कोई ताकत उभार नहीं सकती । जिस नाकामी की आदमी शिकायत करता है वास्तव में कोई चीज नहीं है ।

उसे चाहिये कि वह अपने काम में लग जाए और काम का ध्यान करे फिर वह आदमी देख लेगा कि सफलता उसके पांव चूमने के लिए तेयार खड़ी है या नहीं जो मनुष्य हाथ पर हाथ धर कर बैठा रहता है उसमें ताकत नहीं आती वह दिनों दिन दुर्बल और डरपोक बनता जाता है और यह बेकारी उसको यहां तक नीचे गिरा देती है कि काल और कर्म उसको फिर धर दबाते हैं और जो मनुष्य जिस कदर ज्यादा काम करने का आदी होता है उतनी ही उसमें ताकत भी ज्यादा आती जाती है । संसार में मनुष्य का जीवन कोई मामूली चीज नहीं है ।

अगर वह हस्ती रखता है तो फिर क्या कारण है उसकी हस्ती का असर खाली चला जाय | सिर्फ जरा इसे ,हिम्मत र दिलेरी से काम लेना चाहिये।

कहने का भाव यह है कि जो मनुष्य अपना काम अपने आप करना चाहता है और करने लगता है ईश्वर उसका साथ देता है और जो अपना काम आप नहीं करता कुदरत में उसकी सहायता का कोई सामान नहीं है । ईश्वर की तरफ से सहायता केवल ऐसे ही लोगों को मिला करती है जो अपना काम आप करते हैं । उन भक्तों के पास कौन सी शक्ति होती है जो भगवान को वही खड़े-खड़े प्रकट कर लेते हैं |

यह सिर्फ ख्याल की परिपक्कता और इरादे की मजबूती का असर होता है कि भगवान झट सामने आ मौजूद होते हैं। लोग भगवान-भगवान करते है। बड़ी-बड़ी ऊँची आवाजों से पुकारते हैं - भगवान तू आ, भगवान तू आ, युग-युग प्रकट होने के वायदे याद दिलाते हैं । परन्तु हिम्मत इतना नहीं होती कि संसार की थोड़ी सी दुश्मनी का मुकाबला कर सकें । निंदा का मुँह देखते ही घबड़ा कर रोने लगते हैं और भक्ति को छोड़ने के लिए तैयार हो जाते हैं ।

ऐसे लोगों से भगवान भी करोड़ों स दूरी पर रहते हैं - क्योकि वो जानते हैं कि किस दर्ज का भक्त हैं | इश्वर कोई अनजान नहीं है जिसे कोई भी जबानी जमा खर्च से रिझा लेवें उसे रास्ते मे भी कुरबानी की जरूरत है । जो लोग भगवान के भक्त भी बनना चाहते हैं और साथ ही संसार की लोक लाज और निन्दा स्तुति से भी घबड़ाते हैं उनकी किस्मत उस स्त्री की सी है जो नाचना भी चाहती है और घूँघट लम्बा निकालती है ।

देहाती लोग कहा करते हैं कि नाचने लगी फिर घूंघट कैसा | यह जब नदी में कूद पड़े तो बरसात की बूंदा-बांदी का भय कैसा ? इसी तरहें जब मनुष्य भक्ति मार्ग पर चला है तो फिर उसे लोक लाज का भय त्याग देना चाहिये |