कबीर दास जी और एक वेश्या की कहानी | Story of Kabir Das ji and a prostitute
एक बार की बात है. कबीर दास जी कुटिया के पास एक वेश्या (moll) ने अपना अड्डा (कोठा) बना लिया. कबीर दास जी तो रोजाना भजन कीर्तन करते और भगवान का नाम लेते. वहीं दूसरी ओर सामने वेश्या के कोठे में नाच गाना होता. कबीर दास जी को यह बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता. वहा बडे अजीब अजीब से लोग आया करते. जो गंदी गंदी बातें और हरकतें करते. नाच गाने की आवाजों से कबीर दास जी प्रभु के ध्यान लगाने में बाधा महसूस करने लगे. एक दिन कबीर दास जी वेश्या के कुटिया के सामने गए और उसे बाहर बुलाया.
कबीर दास जी बोले ‘आप यहां जो कर रही है. वह बिल्कुल भी अच्छा नहीं है. और इससे मेरा प्रभु में ध्यान बार-बार भटक रहा है. आप यहां से चली क्यों नहीं जाती?’ कबीर दास जी की यह बात सुनकर वेश्या भड़क जाती है. वह उच्च स्वरों में बोलती है. ‘ए! फकीर तू मुझे यहां से भगाना चाहता है. अरे समस्या तुझे है. तो तू यहां से चला जा.’ फिर कबीर दास जी चुपचाप अपनी कुटिया में आ जाते हैं और भजन कीर्तन करने लगते हैं. ध्यान ना बट जाए इसलिए वे जोर-जोर से उच्च स्वरों में भजन गाते हैं.
इससे उस वैशया के यहां आने वाले लोग कबीर दास जी के भजनों से प्रभावित होते. वे भी कबीर जी के भजन सुनने के लिए उनके पास बैठ जाते. वेश्या सोचती है यह क्या हो रहा है? सभी लोग वहां जा रहे हैं. ऐसा तो ऐसे तो मेरा धंधा चौपट हो जाएगा. वेश्या अपने लोगों के साथ मिलकर कबीर दास जी की कुटिया में आग लगा देती हैं. जलती हुई कुटिया को देख कबीर दास जी बड़े करुण स्वर में कहते हैं. ‘हे! ईश्वर तो आप भी यही चाहते हैं कि, मैं यहां से चला जाऊं. ठीक है! मैं आपकी आज्ञा स्वीकार करता हूं.’ इसी दौरान एक चमत्कार होता है. एक जोरदार हवा का झोंका आता है जो, उस आग को बुझा देता है. वही एक चिंगारी उस पर वैशया की कुटिया में लग जाती है.
अब वेश्या की कुटिया चलने लगती है. इसे देख वह वेश्या मदद के लिए पुकारती है. लेकिन तब तक उसकी कुटिया पूरी जल जाती है. वह कबीर दास जी के चरणों में गिरकर क्षमा याचना करती है. वह वेश्या पछतावे की आग में रोने लगती है. उसके बाद वह यहां दोबारा कभी नहीं आती. इसलिए कबीरदास जी कहते है जो ईश्वर को हर रोज याद करता है. ईश्वर भी मुसीबत के समय उसकी पुकार जरुर सुनता है. |