जय गुरु देव
समय का जगाया हुआ नाम जयगुरुदेव मुसीबत में बोलने से जान माल की रक्षा होगी ।
परम सन्त बाबा उमाकान्त जी महाराज, उज्जैन (मध्य प्रदेश)
कबीर जी ने अपने शांत स्वभाव से बदला एक अहंकारी युवक का जीवन (Kabir Ji Ne Apne Sant Swabhav Se Badla Ek Ahenkare Yuvak Ka Jevan Kahani)

Kabir ji changed the life of an arrogant young man with his calm nature - Hindi Stories

संत कबीर जी अपनी जीविका चलाने के लिए सुत कात कर उससे कपड़ा बनाने का काम करते थे। वह बहुत ही विनम्र और शांत स्वभाव के व्यक्तित्व के स्वामी थे। उनके बारे में यह बात प्रचलित थी कि उन्हें गुस्सा नहीं आता?

एक बार एक साहूकार के पुत्र ने उनके स्वभाव को परखने का निश्चय किया। वह अपने मित्रों के साथ संत कबीर जी के पास पहुंचा। उसने कबीर जी से एक साड़ी का मुल्य पूछा?

कबीर जी ने साड़ी का मुल्य दस रूपये बताया। इतना सुनते ही लड़के की खुराफात शुरू हो गई। उसने कबीर जी को क्रोध दिलाने के लिए साड़ी के दो टुकड़े कर दिए। अब वह लड़का साड़ी का एक टुकड़ा हाथ में पकड़ कर बोला कि," मुझे केवल साड़ी का एक टुकड़ा ही चाहिए। बताओ आधी साड़ी का मुल्य क्या लोगे?" कबीर जी विनम्रतापूर्वक कहा- पांच रूपये।

इतना सुनते ही लड़के ने इस बार फिर से आधी साड़ी को दो भागों में बांटा और उसका मुल्य पूछा। कबीर जी शांति पूर्वक बोले कि," अब इसका मुल्य केवल अढ़ाई रूपये है।"

लड़के का खेल चलता रहा और वह हर बार साड़ी को आगे टुकड़ों में बांट कर उसका मुल्य पूछता रहा और कबीर जी धैर्य से मुल्य बताते रहे। अंत में लड़का कहने लगा कि," मुझे अब साड़ी नहीं चाहिए क्योंकि यह टुकड़े मेरे किसी काम नहीं आएंगे।"

कबीर जी ने शांत भाव से लड़के को उत्तर दिया कि," वें टुकड़े अब तुम्हारे तो क्या किसी के काम नहीं आएंगे?

लड़के को कबीर जी को अभी भी क्रोध ना करते हुए देखकर अपने किए पर शर्मिन्दगी महसूस होने लगी। लड़का ने कबीर जी से कहा कि,"मैंने आपका नुकसान किया है इसलिए मैं इस साड़ी का मुल्य चुकाना चाहता हूं।"

कबीर जी कहने लगे कि," जो साड़ी तुमने मुझ से खरीदी ही नहीं उसका मुल्य मैं तुम से कैसे ले सकता हूं?"

लड़का अमीर साहूकार का पुत्र था। इसलिए पैसे का घमंड दिखाते हुए बोला कि," मैं तो धनी व्यक्ति हूं इसलिए इस साड़ी का मुल्य चुका भी दूंगा तो मेरे धन वैभव में कोई कमी नहीं आएगी। लेकिन तुम तो एक निर्धन जुलाहे हो तुम इतना नुक्सान कैसे सहोगे? इस साड़ी के टुकड़े-टुकड़े करके मैंने ही तो बर्बाद किया है इसलिए साड़ी का मुल्य मुझे ही चुकाना चाहिए।"

कबीर जी उसे समझाते हुए बोले कि," तुमने जो इस साड़ी का जो नुक़सान किया है उसका मुल्य देकर भी तुम उसकी भरपाई नहीं कर सकते।"

कबीर जी की बात सुनकर लड़का विस्मित होकर कबीर जी को देखने लगा कि यह जुलाहा क्या कह रहा है? वह मुल्य चुका कर भी इस साड़ी के नुकसान की भरपाई नहीं कर सकता।

कबीर जी ने उसे बताया कि जरा सोचो कि सबसे पहले किसान ने कितनी मेहनत से इस साड़ी के लिए प्रयोग होने वाली कपास को उगाया होगा। मेरी पत्नी फिर इस कपास को बीना और उसका सूत काता होगा। उसके बाद उसकी रंगाई की गई और उसके पश्चात उसको बुना गया।

हम सब की मेहनत तो सभी सफल हो पाती जब कोई इस साड़ी को पहनता। लेकिन तुम ने इस साड़ी के टुकड़े टुकड़े कर दिए। अब तुम ही बताओ कि इस साड़ी का मुल्य चुका कर तुम इस घाटे को कैसे पूरा कर सकते हो? लड़के की इतनी उद्दंडता के पश्चात भी कबीर जी ने शांत और सौम्य स्वर में उसे समझाया।

अब लड़का शर्म से पानी-पानी हो रहा था। वह कबीर जी के चरणों में गिर गया और क्षमा मांगने लगा।

कबीर जी ने बड़े प्यार से उसे उठाया और समझाया कि देखो बेटा अगर मैं आज तुम से इस साड़ी का मुल्य ले लेता तो मेरे नुकसान की तो भरपाई हो जाती। लेकिन तुम को जीवन का महत्वपूर्ण सबक नहीं मिल पाया।‌ यह अहंकार तुम्हारा जीवन नष्ट कर देता।

साड़ी का क्या है? वह तो मैं मेहनत करके नई बना लूंगा। लेकिन यह जीवन अहंकार के कारण नष्ट हो जाता तो दूसरा जीवन कहां से लाते? अब तुम्हारा पश्चाताप ही इस साड़ी का असली मुल्य है। कबीर जी के इस विचार ने लड़के का जीवन पूर्णतया बदल दिया।

शिक्षा - संत कबीर जी की कहानी से संत शिक्षा मिलती है कि संत व्यक्ति परिस्थितियां कैसी भी हो अपने स्वभाव नहीं बदलते। बल्कि वह अपने अच्छे आचरण से सामने वाले का जीवन बदल देते हैं।