जय गुरु देव
समय का जगाया हुआ नाम जयगुरुदेव मुसीबत में बोलने से जान माल की रक्षा होगी ।
परम सन्त बाबा उमाकान्त जी महाराज, उज्जैन (मध्य प्रदेश)
कर्मों के आधार पर व्यक्ति का मूल्यांकन (Karmon Ke Aadhaar Par Vyakti Ka Moolyaankan)

एक महात्मा के शिष्यों में एक राजकुमार और एक किसान पुत्र भी शामिल थे। राजकुमार को राजपुत्र होने का अहंकार था, जबकि किसान का बेटा विनम्र और कर्मठ था।

राजकुमार के पिता अर्थात वहां के राजा प्रतिवर्ष एक प्रतियोगिता का आयोजन करते थे, जिसमे प्रतिभागियों की बुद्धि का पैनापन और दृष्टि की विशालता परखी जाती थी। उसमें हिस्से लेने के लिए दूर-दूर से राजकुमार आते थे।

अध्ययन पूरा होने पर राजकुमार ने किसान पुत्र को उक्त प्रतियोगिता में शामिल होने का न्यौता दिया, ताकि वहां बुलाकर उसका निरादर किया जाए। जब किसान पुत्र प्रतियोगिता स्थल पर पहुंचा तो राजकुमार व अन्य राजपुत्रों ने उसे अपने मध्य बैठने से इंकार कर दिया।

अंततः किसान पुत्र अलग बैठा गया। राजा ने प्रश्न पूछा - यदि तुम्हारे समक्ष एक घायल शेर आ जाए तो तुम उसे छोड़कर भाग जाओगे या उसका उपचार करोगे ? सभी राजकुमारों का एक ही उत्तर था कि शेर एक हिंसक प्राणी है हम अपने प्राण संकट में डालकर उस शेर का उपचार नहीं करेंगे।

किन्तु किसान पुत्र बोला - मैं शेर का उपचार करूंगा, क्योंकि उस समय घायल जीव को बचाना मेरा परम कर्तव्य होगा। मनुष्य होने के नाते यही मेरा कर्म है।

शेर का कर्म है मांस खाना, स्वस्थ होने पर वह मुझ पर हमला अवश्य करेगा। इसलिए मुझे बुद्धि से कार्य लेना होगा। मैं शेर का उपचार करूंगा। जब मुझे लगेगा कि अब इसकी जान को कोई खतरा नहीं है तो मैं शेर के पूर्णतः अपने पैरों पर खड़ा होने से पहले तुरंत सुरक्षित स्थान पर छिप जाऊंगा।

इस तरह मैं शेर व अपने दोनों के प्राण बचा पाउँगा। एक साधारण किसान पुत्र के मुख से ऐसी बुद्धिमत्ता पूर्वक बातें सुनकर राजा बहुत प्रभावित हुए व उसे विजेता घोषित करते हुए मंत्री पद प्रदान किया। वस्तुतः व्यक्ति का मूल्यांकन उसके वस्त्र या रहन-सहन से नहीं, बल्कि उसके विचार व कर्मों के आधार पर होना चाहिए।