जय गुरु देव
समय का जगाया हुआ नाम जयगुरुदेव मुसीबत में बोलने से जान माल की रक्षा होगी ।
परम सन्त बाबा उमाकान्त जी महाराज, उज्जैन (मध्य प्रदेश)
क्रोध द्वारा मनुष्य स्वयं की क्षति करता है (Krodh Dvaara Manushy Svayan Kee Kshati Karata Hai)

क्रोध द्वारा मनुष्य स्वयं की क्षति करता है | Man harms himself through anger


सार्वभौम चक्रवर्ती सम्राट्‌ होते हुए भी महाराजा अंबरीष भौतिक सुखों से परे थे और सतोगुण के प्रत्तीक माने जाते थे।

एक दिन वे एकादशी व्रत का पारण करने को थे कि महर्षि दुर्वास अपने शिष्यों के सहित वहां पहुँच गए।

अंबरीष ने उनसे शिष्यों सहित भोजन ग्रहण करने का निमंत्रण दिया, जिसे दुर्वासा ने स्वीकार कर कहा,'ठीक है राजन, हमस सभी यमुना-स्नान करने जाते हैं और उसके बाद प्रसाद ग्रहण करेंगे।'

महर्षि को लौटने में विलंब हो गया और अंबरीष के व्रत-पारण की धड़ी आ पहुँची।

राजगुरू ने उन्हें परामर्श दिया कि आप तुलसी-दल के साथ जल पीकर पारण कर लें।

इससे पारण-विधि भी हो जाएगी और दुर्वासा को भोजन कराने से पूर्व ही पारण कर के पाप से भी बच जाएंगे |'

अंबरीष ने जल ग्रहण कर लिया।

दुर्वासा मुनि लौटे तो उन्होंने योगबल से राजन्‌ का पारण जान लिया और इसे अपना अपमान समझकर महर्षि ने क्रोधित होकर अपनी एक जटा नौंची और अंबरीष पर फेंक दी।

वह कृत्या नामक राक्षसी बनकर राजन्‌ पर दौड़ी |

भगवान विष्णु का सुदर्शन-त्रक, जो राजा अंबरीय की सुरक्षा के लिए वहां तैनात रहता था, दुर्वासा को मारने उनके पीछे दौड़ा।

दुर्वासा ने इन्द्र, ब्रद्या और शिव की स्तुति कर उनकी शरण लेनी चाही, लेकिन सभी ने अपनी असमर्थता जतायी |

लाचार होकर वे शेषशायी विष्णु की शरण गए, जिनका सुदर्शन-चक्र अभी भी मुनि का पीछा कर रहा था।

भगवान विष्णु ने भी यह कहकर विवशता जताई कि मैं तो स्वयं भक्तों के वश में हूं।

तुम्हें भक्त अंबरीष की ही शरण में जाना चाहिए, जिसे निर्दोष होते हुए भी तुमने क्रोध वश प्रताड़ित किया है।'

हारकर क्रोधी दुर्वासा को राजा अंबरीष की शरण में जाना पड़ा। राजा ने उनका चरण-स्पर्श किया और सुदर्शन-त्रक लौट गया।

तात्पर्य यह है कि क्रोध ऐसा तमोगुण है जिसका धारणकर्ता दूसरों के सम्मान का अधिकारी नहीं रह जाता, यहां तक कि भगवान्‌ भी उसे अपनी शरण नहीं देते।

गीता भी कहती हैं-

क्रोध से मोह उत्पन्न होता है और मोह से स्मरणशक्ति का विश्रम हो जाता है। जब स्मरणशक्ति भ्रमित हो जाती है, तो बुद्धि का नाश होने पर मनुष्य अपनी स्थिति से गिर जाता है।