लालच करने की सजा | punishment for greed
किसी गांव में राम और श्याम नाम के दो कुबड़े साथ-साथ रहते थे।
राम गरीब और श्याम अमीर था, किन्तु दोनों में अच्छी मित्रता थी।
एक दिन राम ने श्याम से कहा - भाई मैं कब तक तुम्हारे ऊपर बोझ बनकर रहूंगा ?
यह सुनकर श्याम ने कहा - तुम मेरे कामों में मेरा हाथ बांटने लगो।
ताकि तुम्हारे मन में ग्लानि न रहे।
अगले दिन से राम श्याम के कार्यों में सहयोग करने लगा। कुछ दिनों तक सब कुछ ठीक रहा किन्तु धीरे-धीरे श्याम राम से अधिकाधिक काम करने लगा और उसे अपमानित भी करने लगा।
उसके रूखे व्यवहार से दुखी हो राम ने उसका घर छोड़ दिया और जंगल की तरफ चल पड़ा। जंगल में राम की भेंट एक वृक्ष यक्ष से हुई।
उसकी दुखभरी कहानी सुनकर यक्ष को उस पर दया आ गई। उसने राम के कूबड़ पर हाथ फिराया तो वह ठीक हो गया। फिर यक्ष ने उसे एक थैली देते हुए कहा - इसमें सोने की मुहरें हैं यदि तुम सदैव सदाचरण करोगे तो यह थैली कभी तुम्हारा साथ नहीं छोड़ेगी।
राम जब वापस गाँव लौटा, तो श्याम के मन में लोभ जाग्रत हुआ और वह भी जंगल पहुंच गया।
यक्ष के पास जाकर अपना दुखड़ा रोने लगा। लेकिन यक्ष अपनी शक्ति शक्ति से श्याम के झूठ को समझ गया।
श्याम का लालच देखकर यक्ष ने उसकी पीठ पर एक और कूबर पैदा कर दिया और उसे भगा दिया।
कथासार यह है कि व्यक्ति के कर्मों से ही उसका वर्तमान और भविष्य तय होता है। अतः कभी झूठ से आगे बढ़ने की मत सोचो, सदा सतकर्मों की राह पर चलो। |