मानवता की सेवा - service to humanity
अपने कर्म से दिया मानवता की सेवा का सन्देश
महिला संत आंडाल पूजा में लीन थीं।
तभी पास के गाँव के लोग आए और सहायता का आग्रह करने लगे। उन्होंने कहा कि गावं का मुखिया गंभीर रूप से बीमार है, सब जगह ईलाज करवा लिया लेकिन फायदा नहीं हुआ, अब आप ही कुछ करके उसे बचा सकती हैं।
महिला संत आंडाल औषधियों की ज्ञाता थी।
वह अपनी पूजा अधूरी छोड़कर अपने शिष्यों को साथ लेकर मुखिया की सहायता के लिए चल पड़ी। शिष्य जानते थे की गावं का मुखिया की सहायता के लिए चल पड़ी।
शिष्य जानते थे कि गावं का मुखिया की सहायता के लिए पड़ी। शिष्य जानते थे कि गावं का मुखिया दुष्ट प्रवृत्ति का है और संत आंडाल का घोर विरोधी है।
मुखिया के घर जाकर संत आंडाल ने मुखिया का निरीक्षण किया और फिर जड़ी बूटियों से दवाई तैयार करके दी। शिष्यों ने संत आंडाल के कहे अनुसार मुखिया को दवाई पिलाई, जिससे थोड़ी देर में उसकी तबीयत में सुधार हुआ।
दवा देकर संत आंडाल अपने शिष्यों समेत आश्रम लौट गई। आश्रम में आकर एक शिष्य ने पूछा - माते! आपने अपनी पूजा अधूरी छोड़कर उस दुष्ट मुखिया का इलाज क्यों किया ?
वह तो आपका कटट्र दुश्मन है। तब आंडाल बोली - पुत्र! जो आपका दुश्मन है या आपको दुश्मन मानता है, उसके सुख में भले ही आप नहीं जा सकते परन्तु उसके दुःख में अवश्य उसका साथ दें, हो सकता है इससे दुश्मनी की खाई भर जाए।
ईश्वर हर प्राणी में है। इसलिए प्राणी की सेवा ही ईश्वर की सेवा है। हमे ईश्वर सेवा का कोई भी मौका छोड़ना नहीं चाहिए।
शिष्य यह सुनकर श्रद्धाभिभूत हो गए। सार यह है कि दुःख में सबके काम आना चाहिए।
इससे दुखी व पीड़ित व्यक्ति को दुःख से लड़ने की ताकत मिलती है। |