एक कैद खाना था उसमें ८४ दरवाजे थे । एक दरवाजा खुला हुआ था | बाकी सब बन्द थे । उसमें जो लोग रहते थे, बड़े दुःखी थे । एक आदमी उस किले में गया उसने देखा इन्हें अच्छा खाना नहीं मिलता । उसने रुपये मंजूर किया भाई इनको खाना अच्छा दिया करो और वह चला गया | परोपकार कर आया । एक और गया, उसने देखा की इनके कपड़े फटे पुराने हैं, सरदी लगती है, सरदी से लाचार है। | उसने कहा कि इनको कपड़े आगे से अच्छा दिया करो | रुपया मन्जूर कर दिया | वह थी परोपकार कर गया | एक और गया उसने देखा कि सब काल कोठरी में रहते हैं, अन्धेरा है बुरा हाल है, इनको अच्छे मकान बनाकर दो रहने को | उसने रुपया अपनी तरफ से दिया | वह भी उपकार कर आया। एक और गया, उसने कहा भईयो ! दरवाजा खुला है जाओ निकल जाओ । सबको दरवाजे से निकाल दिया |
अब परोपकार सबने किया | किसका परोपकार सबसे बड़ा है ? वहां तो परोपकार यही है न कपड़ा दो, खाना दो पर कैदी ही बने रहो, तो जो आखिरी में गया उसने परोपकार किया कि कैदखाना से छुड़ाया वह छुड़ाने का काम अनुभवी महापुरष का है जो हमेशा के लिये जन्म-मरण से छटकारा दिला देते हैं. । इसलिये सतगुरु जी दुनियां में आते हैं और नामदान देकर जीवों को 84 के चक्कर से छुड़ाकर अपने निज देश सत्त देश मैं मालिक के पास पहुँचा देते हैं वही सच्चे परोपकारी हैं | |