मूर्ख मित्र |
पण्डितोऽपि वरं शत्रुर्न मूो हितकारकः ।
हितचिंतक मूर्ख की अपेक्षा अहितचिंतक बुद्धिमान अच्छा होता है।
किसी राजा के राजमहल में एक बन्दर सेवक के रूप में रहता था।
वह राजा का बहुत विश्वासपात्र और भक्त था।
अन्तःपुर में ही वह बेरोक-टोक जा सकता था।
एक दिन राजा सो रहा था और बन्दर पंखा झल रहा था, तो बन्दर ने देखा, एक मक्खी बार-बार राजा की छाती पर बैठी तो उसने पूरे बल से मक्खी पर तलवार का हाथ छोड़ दिया।
मक्खी तो उड़ गई, किन्तु राजा की छाती तलवार की चोट से टुकड़े हो गई। राजा मर गया।
कथा सुनाकर करटक ने कहा-इसीलिए मैं मूर्ख मित्र की अपेक्षा विद्वान शत्रु को अच्छा समझता हूँ।
इधर दमनक-करटक बातचीत कर रहे थे, उधर शेर और बैल का संग्राम चल रहा था।
शेर ने थोड़ी देर बाद बैल को इतना घायल कर दिया कि वह ज़मीन पर गिरकर मर गया।
मित्र-हत्या के बाद पिंगलक को बड़ा पश्चात्ताप हुआ, किन्तु दमनक ने आकर पिंगलक को फिर राजनीति का उपदेश दिया।
पिंगलक ने दमनक को फिर अपना प्रधानमन्त्री बना लिया।
दमनक की इच्छा पूरी हुई। पिंगलक दमनक की सहायता से राज-कार्य करने लगा। |