जय गुरु देव
समय का जगाया हुआ नाम जयगुरुदेव मुसीबत में बोलने से जान माल की रक्षा होगी ।
परम सन्त बाबा उमाकान्त जी महाराज, उज्जैन (मध्य प्रदेश)
पीरां दित्ता मरासी की ईर्ष्या (Peeran Ditta Marasi Ki Irshya Kahani)

Jealousy of Piran Ditta Marasi | Hindi Stories

गुरु रविदास सबका भला चाहनेवाले महापुरुष थे। उनके हृदय में सबके लिए प्यार था। व्यक्ति चाहे किसी भी जाति का क्‍यों न हो, वे सबको सत्य का उपदेश देते थे। बुराइयों से हटाकर सत्य मार्ग पर जीवों को लगाना ही रविदास के जीवन का लक्ष्य था। उनके विचारों से प्रभावित होकर सभी वर्णों के लोग उनके पास श्रद्धापूर्वक आने लगे।

पीरां दित्ता मगासी को यह अच्छा न लगा और वह गुरु रविदास से ईर्ष्या करने लगा। उसने एक दिन नगर के बाहर एकांत में एक सभा बुलाई, समाज के कई गणमान्य लोग वहाँ आए, सबने पीरां दित्ता की बात सुनकर गुरु रविदास को मारने का विचार किया और इस विचार से सभा में उपस्थित सभी लोग सहमत हो गए। गुरु रविदास ज्यों ही उस सभा में पहुँचे तो कुछ लोग कटु वचन कहने लगे। गुरु रविदास ने उन लोगों से कहा कि आप बुरे वचन क्‍यों बोल रहे हैं? मुँह से पवित्र वचन बोलना चाहिए, जिनको सुनकर दूसरों का भला हो और अपना कल्याण हो। कटु वचन बोलने से क्या लाभ है? इसके अलावा मेरा आप लोगों से कोई विरोध नहीं है।

मेरे लिए कोई धर्म अच्छा या बुरा नहीं है। अच्छे कर्म करने से पुरुष अच्छा कहा जाता है और बुरा करनेवाला और बुरा सोचनेवाला बुरा माना जाता है। विवेकी श्रोता तो गुरु रविदास के अमृत वचन सुनकर प्रभावित हो गए मगर जो दुष्ट प्रवृत्ति के थे, वे आक्रमण पर उतारू हो गए। ऐसा देखकर गुरु रविदास ने प्रभु को पुकारते हुए कहा--

राम गुसंईया जीअ के जीवना।
मोहि न बिसारहु में जनु तेरा।
मेरी हरहु विपति जन करहु सुभाई।
चरन न छाड़ओ सरीर कल जाई।
कहु रविदास परउ तेरी सांभा।
बेगि मिलहु जन करि न बिलंबा।

जब गुरु रविदास ने ऐसा कहा तो एक तेज प्रकाश निकला और सभी आश्चर्यचकित रह गए। वहाँ उपस्थित सभी लोग उनके चरणों में गिर पड़े।