अगले दिन जब राजा भोज ने सिंहासन पर बैठने का विचार किया तो दसवीं पुतली प्रभवती स्थान से निकल कर उनका रास्ता रोकते हुए बोली - "ठहरो राजा भोज ! सिंहासन पर बैठने से पहले मेरी एक कथा सुन लो ।" इतना कहकर पुतली ने राजा भोज को कथा सुनानी आरंभ की -
एक बार राजा विक्रमादित्य रात को साधारण नागरिक के वेश मे नगर भ्रमण के लिए निकले । नगर भ्रमण करते-करते अचानक उन्हे किसी स्त्री की चीख सुनाई दी । वे चीख की दिशा की ओर बढने लगे । कुछ दूर जाकर उन्होने देखा कि एक सुन्दर युवती जान बचाकर भाग रही है और एक राक्षस उसका पीछा करता हुआ उसे पकड़ने का प्रयास कर रहा है । राजा विक्रमादित्य ने भी तेजी से उनके पीछे अपना घोड़ा दौड़ा दिया । जब वे उनके करीब पहुंच गए तो वे अपने घोड़े से नीचे उतरे । उनके नीचे आते ही वह युवती भागती हुई उनके चरणो मे गिरकर बोली - मुझे इस राक्षस से बचा लीजिए ।
विक्रमादित्य उस स्त्री का हाथ थामते हुए बोले - उठो बहन ! घबराओ मत । इस समय तुम राजा विक्रमादित्य की शरण मे हो अब तुम्हे डरने की जरूरत नही है ।
तभी राक्षस अट्ठहास करता हुआ बोला - तू क्या बचाएगा इसे अगर तुझे अपनी जान प्यारी है तो भाग जा यहां से नहीं तो मैं तुझे चीटी की तरह मसल दूंगा । यह कहकर राक्षस अपनी क्रुरता के साथ विक्रमादित्य की ओर बढ़ने लगा ।
राक्षस को अपनी ओर बढ़ता देख विक्रमादित्य ने बिजली की तेजी से अपनी म्यान से तलवार निकाली और राक्षस पर वार कर दिया लेकिन राक्षस ने बड़ी फुर्ती से विक्रमादित्य का वह वार बचा लिया और उससे भिड़ गया । देखते ही देखते दोनो के बीच युद्ध होने लगा । विक्रमादित्य ने उचित अवसर देखकर अपनी तलवार की एक ही वार से राक्षस का सिर धड़ से अलग कर दिया । लेकिन यह क्या ? देखते हि देखते राक्षस फिर जिन्दा हो गया और विक्रमादित्य पर झपटा । यह देखकर वे भौचक्के रह गए लेकिन उन्होने अपना साहस नहीं खोया और राक्षस पर लात घूंसों की बरसात कर दी । विक्रमादित्य को अपने पर भारी पड़ा देख राक्षस वहां से भाग गया । कुछ दूर तक उन्होने राक्षस का पीछा किया लेकिन फिर उन्होने सोचा कि पीठ दिखाने वाले पर प्रहार नही करना चाहिए । यह सोचकर वे वापस लौट आए और शरणागत स्त्री के पास जाकर बोले - बहन, अब तुम्हे डरने की कोई जरुरत नहीं है अब राक्षस भाग चुका है ।
यह सुनकर स्त्री बोली - राजन, आपने मेरी रक्षा की इसके लिए मैं आपका धन्यवाद करती हूंँ लेकिन खतरा अभी टला नही है । खतरा तो तब टलेगा जब यह मारा जाता । अब तो वह और शक्तिशाली होकर किसी भी समय और किसी भी रुप में हमला कर सकता है ।
विक्रमादित्य बोले - चिंता मत करो बहन ! मैने तुम्हे रक्षा कवच दिया है । मैं अपनी जान पर खेलकर भी तुम्हारी रक्षा करुंगा । अब तुम मुझे अपना परिचय दो और यह बताओ कि यह राक्षस तुम्हारे पीछे क्यों पड़ा है और एक बार गर्दन काट्ने के बाद दोबारा जीवित कैसे हो जाता है ?
स्त्री बोली - महाराज, मैं सिंहल द्वीप राज्य के एक ब्राह्मण की पुत्री हूँ । एक दिन मैं अपने सखियों के साथ स्नान करने गई । जब मैं नहा रही थी तो उस राक्षस ने मुझे देख लिया और मुझ पर मोहित हो गया और मुझे पकड़कर इस निर्जन वन मे ले आया । वह मुझसे जवरदस्ती शादी करना चाहता है । यह कहकर वह रोने लगी।
फिर उसने आंसू पोछते हुए कहा - और हां, यह राक्षस मरने के बाद जिन्दा इसलिए हो जाता है कि इसके पेट मे एक मोहिनी है । वह मोहिनी उसे जिन्दा कर देती है । जब तक वह मोहिनी उसके पेट से बाहर नही निकलेगी वह मर नही सकता । यह बात खुद राक्षस ने मुझे बताई है ।
अभी यह बातें कर ही रहे थे कि तभी झाड़ियों के पीछे से एक शेर दड़हाता हुआ विक्रमादित्य पर झपटा । अचानक इस हमले से विक्रमादित्य चौंक गए लेकिन उन्होने हिम्मत नही हारी और शेर के पैर पकड़ कर उसे दूर उछाल फेका । काफी दूर जा गिरने के बाद राक्षस अपने असली रुप मे आ गया और गर्जना करता हुआ दोवारा विक्रमादित्य से भीड़ गया । दोनो मे घमाशान युद्ध होने लगा । विक्रमादित्य के प्रहारों से राक्षस बूरी तरह लड़खड़ाने लगा । इस मौके का फायदा उठाकर विक्रमादित्य ने उसके पेट मे तलवार घोंप दी और उसका पूरा पेट चीर डाला । राक्षस चिंघाड़ता हुआ जमीन पर गिर पड़ा ।
राक्षस का पेट फटते ही मोहिनी उसके पेट से बाहर आ गई । उसके बाहर निकलते ही राक्षस ने दम तोड़ दिया । विक्रमादित्य ने मोहिनी से पूछा - तुम कौन हो सुन्दरी और किस कारण इस राक्षस के पेट मे निवास कर रही थी ?
मोहिनी बोली - राजन् , मैं शिव की एक गणिका थी । एक बार उनकी आज्ञा का पालन करने मे मुझसे गलती हो गई । इससे क्रोधित होकर उन्होने मुझे शाप देकर मोहिनी बना दिया । इस दैत्य ने शिव की तपस्या की थी इसलिए शिव ने मुझे इसे दे दिया और कहा कि इसकी सेवा करो । इस पापी ने मुझे पेट मे कैद कर लिया। तब से मैं इसके पेट मे हूँ ।
यह सब जानने के बाद राजा विक्रमादित्य मोहिनी तथा ब्राह्मण कन्या को साथ लेकर अपने महल लौट आए । उन्होने महल मे पहुंचते ही अपने महामंत्री को आदेश दिया कि नगर से से किसी योग्य ब्राह्मण कुमार को ढूंढ लाओ । आज्ञा मिलते ही महामंत्री नगर से एक ब्राह्मण कुमार को ढूंढ लाया विक्रमादित्य ने ब्राह्मण कुमार से कहा - ब्राह्मण देव मेरे पास एक कन्या है । मैं चाहता हू कि मैं उसका विवाह तुम्हारे साथ कर दूं , क्या तुम्हे मंजूर है ?
ब्राह्मण कुमार बोला-'महाराज, जैसी आपकी आज्ञा। मुझे कोई ऎतराज नहीं है।'
यह सुनकर विक्रमादित्य को बड़ी प्रसन्नता हुई। उन्होंने ब्राह्मण कुमार से उस कन्या का विवाह कर दिया और कन्या के पिता को खबर भिजवाकर कन्यादान कर बहुत सारा धन दहेज में देकर उन्हें विदा किया और खुद मोहिनी से विवाह कर लिया।'
यह कथा सुनकर पुतली बोली-'सुना तुमने राजा भोज, ऎसे थे हमारे महाराजा विक्रमादित्य। क्या तुमने कभी किसी विपदा की मारी अबला नारी की सहायता की?" यह कहकर पुतली अदृश्य हो गई।
पुतली का प्रश्न सुनकर निराशा से भरकर राजा भोज वापस लौट गए। |