जय गुरु देव
समय का जगाया हुआ नाम जयगुरुदेव मुसीबत में बोलने से जान माल की रक्षा होगी ।
परम सन्त बाबा उमाकान्त जी महाराज, उज्जैन (मध्य प्रदेश)
प्यार और परवाह (Pyaar Aur Paravaah)

पिताजी मां से : ड्रोवर में क्या खोज रही हो?

माँ: मैने कुछ पैसे बचाकर रखें थे वो मुझे नही मिल रहे है। मुझे डिलीवरीमैन को भुगतान करना है मैने कुछ ग्रोसरी मंगाई है।

पिताजी: चिंता मत करो, तुम्हें वो मिल जाएगा। डिलीवरीमैन को कितना देना है?

मां: 5 हजार रुपये।

पिताजी ने डिलीवरीमैन को भुगतान किया और हम इसके बाद अपने दैनिक काम में व्यस्त हो गए। अगले दिन, माँ, पिताजी और मैं रसोई की सफाई कर रहे थे, तभी मेरी माँ खुशी से चिल्लाई।

माँ: देखो, मुझे मेरे पैसे मिल गए, वह अलमारी में हैं। मैं कितनी मूर्ख हु, मैंने पूरा घर खोजा और पैसे यहां थे!

माँ बहुत खुश लग रही थी क्योंकि उसने पैसे अपने दोस्त के जन्मदिन के उपहार के लिए बचाकर रखा था। लेकिन सच्चाई कुछ और ही थी!

पिताजी सिगरेट पीने के लिए घर से बाहर निकले और मैं उनके पीछे गई।

मैंने पापा से पूछा आपने ऐसा क्यों किया?'

पिता ने पूछा: 'क्या किया?'

मैंने उन्हें बताया, “मैं सच्चाई जानती हूँ क्योंकि मैंने आपको अपने बटुए से पैसे निकालकर किचन की अलमारी में रखते हुए देखा था!'

पिताजी ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया: “तुम्हें पता है न कि वह मेरे लिए सब कुछ है! मैं उसे कल खोए हुए थोड़े से पैसों के लिए दुखी होते नहीं देख सकता। क्योंकि मुझे लगता है कि हमें उस व्यक्ति की देखभाल करने की ज़रूरत है, जिसे हम सबसे ज़्यादा प्यार करते हैं!”

पिताजी रूमाल निकालते हैं और अपना पसीना पोछने लगते हैं।

मैंने कहा, "पिताजी, अब ये क्या है? आप माँ का रूमाल क्यों इस्तेमाल कर रहे हैं?" अब बताइए ऐसा करने से तो किसकी परवाह नही होती!”

पिताजी "नहीं, लेकिन ये मेरे पास हैं क्योंकि इसमें अभी भी उसकी खुशबू है।"

यह कुछ ऐसा था जिसने न केवल जीवन के प्रति बल्कि प्रेम के प्रति भी मेरा पूरा दृष्टिकोण बदल दिया।