Story of Raja Pipa | Hindi Stories
राजा पीपा एक वैभवशाली क्षत्रिय नरेश थे। रविदासजी की प्रसिद्धि सुनकर वे उनके पास जाना चाहते थे किंतु एक चमार के पास जाने में उन्हें संकोच होता था। एक दिन वे चुपके से रविदासजी की झोपड़ी में जा पहुँचे और पहुँचते ही उन्होंने रविदासजी से नामदान के लिए बिनती की। रविदासजी उस समय चमड़ा भिगोने के कुंड से पानी निकाल रहे थे।
उन्होंने उसी कुंड के पानी को लेकर राजा से कहा ‘‘राजा। ले यह चरणामृत पी ले।’’ राजा के मन में झिझक हुर्इ किंतु वह स्पष्ट इन्कार न कर सके। अत: हाथ आगे करके राजा ने अपने चुल्लू में पानी ले तो लिया पर, रविदासजी की आँख बचाकर उसे अपने कुरते की आस्तीन से गिरा दिया। रविदासजी इस बात को ताड़ गए परंतु उन्होंने कुछ कहा नहीं। राजा जल्दी से घर लौट आया और धोबी को बुलाकर आदेश दिया कि आस्तीन के दाग को छुड़ाकर उसे अच्छी तरह धोकर लाए। धोबी कुरते को घर ले गया और अपनी लड़की से कहा कि वह दाग को मुँह में लेकर चूसे ताकि दाग निकल जाए। लड़की छोटी थी, वह दाग चूसकर थूकने के बजाए निगलती गयी, जिससे उसका आंतरिक ज्ञान खुल गया और ऊँची आध्यात्मिक बातें करने लगी।
धीरे-धीरे यह बात पूरे शहर में फैल गयी। राजा पीपा यह सुनकर जब धोबी की लड़की के पास आया तो उसने बतलाया कि किस प्रकार राजा के कुरते के दाग को चूसने से उसे आंतरिक ज्ञान प्राप्त हुआ। यह सुन राजा पीपा को घोर पश्चापाप हुआ। वह दौड़कर रविदासजी की झोपड़ी में जा पहुँचा और उनसे पुन: चरणामृत देने की प्रार्थना की । इस पर रविदासजी ने कहा, ‘‘राजा, वह कुण्ड का पानी नहीं था, अमृत था। मैंने सोचा, मैं रोज पीता हूँ आज राजा भी पी ले किंतु तूने उसे चमड़े का पानी समझकर घृणा की और उसे कुरते में गिरा दिया। अब मैं तुझे नाम की दीक्षा दूँगा। कमार्इ करके इस दौलत को प्रकट कर लेना।’’ |