ऋषि ने बताया प्रकृति का महत्त्व - The sage told the importance of nature
एक बार राजा यदु ने ऋषि दतात्रेय से पूछा- “महाराज!
मैं जानना चाहता हूं कि आपने आत्मा में ही परमानंद का अनुभव कंसे प्राप्त किया और कौन से गुरु ने आपको ब्रह्म-विद्या का ज्ञान दिया ?
” दतात्रेय बोले- राजन! मैंने अंतःकरण से अनेक गुरुओं द्वारा मूक उपदेश प्राप्त किए हैं।
यदु ने उन गुरुओं के विषय में जानना चाहा, तो दतात्रेय ने कहा- “ये गुरु हैं- पृथ्वी, वायु, आकाश, जल, अग्नि, समुद्र, चंद्रमा, सूर्य, मधुमक्खी आदि।
' यह सुनकर यदु बोले- “ये सब या तो जड़ हैं अथवा निर्बुद्धि।
इनमें से आपको क्या उपदेश मिला ?
अब दतात्रेय ने कहा- यदि हम अपने अंतःकरण को निर्मल बना लें, तो इस विशाल प्रकृति से काफी कुछ सीख सकते हें।
मैंने पृथ्वी से धेर्य और क्षमा की शिक्षा ली।
वायु हमें यह सिखाती है कि जैसे अनेक स्थानों पर जाने पर भी वह कहीं आसकक्त नहीं होती, वैसे ही हम भी आसक्ति और दोषों से परे रहें।
आकाश हर परिस्थिति में अखंड रहता है, जल स्वच्छता, पवित्रता और मधुरता का उपदेश देता है, तो अग्नि इंद्वियों से अपराजित रहते हुए तेजस्वी बने रहने की सीख देती हे।
समुद्र वर्षा ऋतु में न तो बढ़ता है और न ही ग्रीष्म ऋतु में नदियों के सूखने पर घटता है।
इससे प्रेरणा मिलती है कि सांसारिक पदार्थों की प्राप्ति पर न तो ज्यादा खुश होएं और न ही उनके नष्ट होने पर दुख मनाएं।
मधुमक्खी के परिश्रमपूर्वक संचित रस को कोई और ही भोगता है, इससे हमें दो शिक्षाएं मिलती हैं,
पहली कि हमें अनावश्यक संग्रह नहीं करना चाहिए, दूसरी कि अगर आप परिश्रम से किसी वस्तु का संग्रह करते हो तो उसे जनहित में समर्पित कर देना चाहिए।
इसी प्रकार सूर्य और चंद्रमा अपनी उष्मता और शीतलता से इस सृष्टि के संचालन में महत्ती भूमिका निभाकर हमें भी समाज के लिए कुछ बेहतर करने की शिक्षा देते हैं।' |