जय गुरु देव
समय का जगाया हुआ नाम जयगुरुदेव मुसीबत में बोलने से जान माल की रक्षा होगी ।
परम सन्त बाबा उमाकान्त जी महाराज, उज्जैन (मध्य प्रदेश)
समाज में चेतना फैलाने का लिया निर्णय (Samaaj Mein Chetana Phailaane Ka Liya Nirnay)

समाज में चेतना फैलाने का लिया निर्णय - Decision taken to spread awareness in society


एक बार महर्षि भारद्दाज को कठोर तपस्या का विचार आया।

इसके लिए वे एक गुफा में चले गए।

तपस्या करते हुए उन्हें अनेक वर्ष हो गए, कितु वे गुफा से बाहर नहीं आए।

उनकी तपस्या से घबराकर इंद्र वहां आए और उन्होंने गुफा के बाहर से आवाज लगाई- “मुनि भारद्वाज आप कहां हैं ?'

महर्षि ने उत्तर दिया- 'कौन है जो मेरी तपस्या में बाधा डाल रहा है ?

यहां से चले जाओ।' इंद्र वापस चले गए।

दो दिन बाद वे फिर आए और मुनि को पुकारा।

उस दिन भी अंदर से वही जवाब मिला।

देवराज इंद्र वापस लोट गए। अगले दो दिनों बाद वे पुनः आए और बोले- “महर्षि मैं इंद्र हूं।

आप बाहर आने की कृपा करें।

' इंद्र का नाम सुनते ही महर्षि गुफा से बाहर आकर बोले- “देवेंद्र! मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूं ?'

इंद्र ने कहा- “मैं आपसे कुछ मांगने आया हूं।'

महर्षि बोले- 'मैं तो एक निर्धन ब्राह्मण हूं।

मेरे पास आपको देने के लिए क्‍या है ?

यह सुनकर इंद्र ने कहा- “जिसके पास दुनिया में ज्ञान, विद्या और धर्म हो, उससे बढ़कर कोई धनी नहीं।

वास्तव में निर्धन तो वह है, जिसके पास धन है, किंतु बुद्धि और ज्ञान नहीं है।

आप अपने ज्ञान से लोगों को जाग्रत करिए।

इस गुफा से बाहर निकलकर जन-समाज में जाइए और अधर्म को रोकिए।

अपने ज्ञान का उपयोग कर समाज को चेतनायुक्त बनाइए।'

महर्षि ने इंद्र की बात मान ली। वे लोगों में ज्ञान की ज्योति जलाने के कार्य में जुट गए।

वास्तव में निज तक सीमित ज्ञान स्वयं को ही लाभ पहुंचाता है।

जबकि जनता के बीच उसका प्रसार सामाजिक कल्याण को साकार करता है।