जय गुरु देव
समय का जगाया हुआ नाम जयगुरुदेव मुसीबत में बोलने से जान माल की रक्षा होगी ।
परम सन्त बाबा उमाकान्त जी महाराज, उज्जैन (मध्य प्रदेश)
संतुलित जीवन का राज (Santulit Jeevan Ka Raaj)

संतुलित जीवन का राज - secret of balanced life


गौतम बुद्ध से राजकुमार श्रोण ने दीक्षा ली थी।

एक दिन बुद्ध अन्य शिष्यों ने बुद्ध को बताया कि श्रोण तप की उच्चतम सीमा तक पहुंच गया है, वह ज्यादातर तप में लगा रहता है।

वह दो तीन दिन में एक बार ही नाममात्र भोजन करता है।

अन्न जल ग्रहण नहीं करने से उसका शरीर अत्यधिक कमजोर हो गया है।

चूँकि वह पहले राजसी जीवन जीता था, इसलिए इतने त्यागमय जीवन का वह आदि नहीं है।

वह हड्डियों का ढांचा बनकर रह गया है।

यह सुनकर बुद्ध को उसकी चिंता होती है।

बुद्ध ने श्रोण को बुलाकर कहा - मैंने सुना है कि तुम सितार बहुत अच्छा बजाते हो।

क्या तुम मुझे सुना सकते हो ?

श्रोण ने कहा - हाँ मैं आपको सितार बजाकर सुना सकता हूँ किन्तु आज आप अचानक सितार क्यों सुनना चाहते हैं ?

बुद्ध ने कहा - न सिर्फ सुनना चाह्हता हूँ बल्कि उसके विषय में जानना भी चाहता हूँ।

मैंने सुना है कि यदि सितार के तार अगर ढीले हों या अत्यधिक कसे हुए हों तो उनसे संगीत पैदा नहीं होता।

श्रोण बोला - यह सही है। यदि तार ढीले होंगे तो सुर बिगड़ जाएंगे और अधिक कसे होने की स्थिति में वे टूट जाएंगे। तार मध्य में होने चाहिए, न तो ज्यादा ढीले और न ज्यादा कसे हुए।

तब बुद्ध ने उसे समझाया - जी सितार का नियम है, व्ही जीवन कि तपस्या का भी नियम है। मध्य में रहो। न भोग की अति करो, न तप की।

अपने अध्यात्म को संतुलित दृष्टि से देखो।

श्रोण समझ गया कि मध्य में रहकर ही जीवनरूपी सितार से संगीत का आनंद उठाया जा सकता है।

वस्तुतः जीवन में अनुशासन व तप आवश्यक है किन्तु एक संतुलन के साथ क्योंकि हर चीज की अति बुरी होती है।