जय गुरु देव
समय का जगाया हुआ नाम जयगुरुदेव मुसीबत में बोलने से जान माल की रक्षा होगी ।
परम सन्त बाबा उमाकान्त जी महाराज, उज्जैन (मध्य प्रदेश)
तानाशाही और परमार्थ (Tanasahi Aur Parmarth Kahani)

बुल्लेशाह एक फकीर हुए हैं, उनके गुरु शाह इनायत्त साहब थे | पूर्ण पुरुष मिले थे, लोग महात्माओं के चरणों मे जाते हैं तो लोक-लाज से बंधे हुये जाते हैं । एक दिन बुल्लेशाह के यहां कुछ नाचने वालों को गुरु साहब ने भेज दिया बुल्लेशाह के सम्मान को धक्का लगा । लोगों ने ताना दिया कि तुम्हारे गुरु भाई तुमसे मिलने आये हैं । बुल्लेशाह ने लोक-लाज के डर से कहा कि ये सब मेरे भाई नहीं हैं | लौटने पर नाचने वालों ने शाह इनायत से सारी बात बता दी | गुरुजी ने कहा कि कोई बात नहीं । बुल्लेशाह साधना करते थे और रसोई भी अच्छी थी । उस दिन से उनकी

रुहानी तरक्की बन्द हो गई। वे बड़े परेशान हुए । गुरु भी इनके प्रति उदासीन दिखाई पड़ने लगे तो खूब रोये । सोचा कि अब क्या किया जाय ? गलती मालूम हो गई थी | परमार्थ के रास्ते पर चलने वालों को अहंकार मिटाना पड़ता है, लोक-लाज समाप्त करनी पड़ती है, तानेकशी वर्दास्त
करनी पड़ती है । गुरु को खुश करना आसान बात नहीं थी | उन्होंने देखा कि शाह इनायत को गाना पसन्द था। बुल्लेशाह ने मुराशत को खुश करने के लिये कंजरों से गाना सीखना शुरू कर दिया । माना अपमान से बड़ी चीज उनकी रुहानी तरक्की छिन गई थी, बन्द हो गई थी | साधकों की साधना रुक जाये जो दिखाई सुनाई पड़ता है वह बन्द हो जाये तो ऐसी बिरह तड़प पैदा होती है कि मरना बेहतर समझते हैं तो वे वेश्या के यहां गये गाना सीखने लगे । कुछ दिन बीत गये । लगन से काम किया जाय तो सफलता जल्द मिलने लगती है । बुल्लेशाह एक अच्छे गायक बन गये और नाचने वाले भी । गुरु के प्यार ने इस स्तर पर पहुँचा दिया कि सारी लोकलज्जा कुल की मर्यादा समाप्त हो गई । गुरू खुश हो जाये बस और कुछ नहीं चाहिये । एक दिन वेश्या शाह इनायत के यहाँ कब्बाली के लिये जाने लगी तो बुल्लेशाह ने उससे कहा कि अपने कपड़े मुझे दे दो तेरी जगह मैं कब्बाली करूँगा । बुल्लेशाह यहाँ पहुँचे व गाना शुरू कर दिया | चेहरे पर घूँघट था । गाने के साथ नाचने भी लगे