सुमिरन ध्यान भजन बैठकर तथा पूरब की तरफ मुँह करंके करना चाहिये । यदि सम्भव न हो तो उत्तर या पश्चिम की तरफ मुँह करके करें । दक्षिण की त्तरफ मुँह करके नहीं बैठना चाहिये । जिस नाम का सुमिरन किया जावे अन्तर में उसके स्वरूप का ध्यान भी जरूर करना चाहिये | वरना वह सुमिरन पूरा फायदा नहीं देगा |
सतगुरु की सेवा से करम कटते हैं और अन्तःकरण एक होता है सतसंग साधन भजन करने से सुरत की तवज्जह ऊपर को हो जाती है फिर पहले मुकाम का शब्द सुरत की चुम्बक की तरह अपनी ओर खींच लेता है फिर त्रिकुटी का शब्द प्रकट होकर सुरत की जोत- को बदल देता है यानि लोहे को स्वर्ण बना देता है । उसी वक्त पहिला शब्द उसको छोड़ देता है ओर दूसरे मुकाम का शब्द सुरत को अपनी तरफ खींच लेता है इसी प्रकार शब्द की पौड़ी सत्तलोक तक बनी हुई है ।
जब तक सत्तलोक तक के पांचों मुकामों की उपासना प्रेम ओर विरह के साथ सतगुरु की दया लेकर नहीं की जायेगी यह मुकाम तै नहीं होंगे | संतों के सतसंगियों की यह पांच धनी गुरू के समान सहायता करते हैं |
भजन सुमिरन का वक्त सबसे अच्छा रात के 2 बजे से सुबह के आठ बजे और दूसरा रात के ७ बजे से ११ बजे तक .है | इस वक्त में अन्तरी रस जयादा मिलता है क्योंकि यह सतोगुणी समय है । ऊपर के लोगों में सुरत की चढ़ाई 3 तरह से होती है ख्याल से, ध्यान से और सुरत से। पहले मुकाम तक सुरत की चाल चींटी के सामन है, दूसरे मुकाम तक मछली के समान, तीसरे मुकाम पर मकड़ी के समान और आगे विहंग के मान है |
सत्संगियों को मालिक के नाम पर पवित्र भोजन जो मिले उसे खाना चाहिये । मरते वक्त का पुण्य किया हुआ अन्न या मनौती का भोजन या देवी भैेरों वगैरह की पूजा का नहीं खाना चाहिये | अगर ऐसा भोजन या अन्न वगैरह कहीं से आ जाये तो गरीबों ओर मुहताजों को या कोढ़ी कंगालों
को दे देना चाहिये या सतगुरु जिसको भी मुनासिव समझ अपनी दया से दे दें । जो अन्न या भोजन किसी का दिल दुखाकर लिया गया हो वह खराब है | भोजन हक हलाल की कमाई का हो या प्रेमी प्रेम से खिलावे वह दुरुस्त यानी ठीक है |
अगर सत्संगी से कोई खराब कर्म बन जाय तो गुरु से प्रार्थना करे तो उसकी 'माफी भी मिल सकती है और करम का मैल भी दूर कर सकते हैं । नामदान लेने के बाद (पश्चात) मांस, मछली, अण्डा, शराब आदि का सेवन भूल करके भी नहीं करना चाहिये और नामदान लेने के बाद मांस शराब आदि का सेवन नासमझी में किया है या अन्न कोई नाफिस कर्म बन गया है तो गुरू के पास जाकर अवश्य मांफी मांगनी चाहिये वर्ना कर्म का फल भोगना है |
सुमिरन करने के पहले पाँचों नामों को याद करके गुरू स्वरूप को अन्तर दृष्टि से भत्था टेकना चाहिये फिर एक-एक नाम का सुमिरन करके स्वरूप को माथा टेकने से धनी प्रसन्न रहते हैं । इसके बाद सुमिरन आठ माला का करे और अन्त में फिर पांचों नामों को अलग-अलग करके स्वरूपों को मत्था टेके | ध्यान और भजन के पहले और अन्त में भी इसी प्रकार पौँचों नामों को याद करें और मत्था टेकने पर दया का आभास शीघ्र होगा । पहला नाम लिया, स्वरूप का ध्यान किया और दृष्टि से ही मत्था टेका | फिर दूसरा नाम लिया, स्वरूप का ध्यान किया और मथां टेका इसी प्रकार पांचों नामों को लेकर साधना प्रारम्भ करनी चाहिये । पांच मिनट में यह कार्य हो जायेगा और सुमिरन प्रतिदिन करे एक दिन भी नागा न करे वरना सुमिरन अधूरा हो जायेगा ओर वह पूरा फायदा भी नहीं होगा | |