विश्वास | faith
गुन बस में बैठी खिड़की से बाहर के नजारों का आनंद ले रही थी।
रास्ते के स्टॉपेज से एक किशोरवय लड़का दो भारी बैग लेकर चढ़ा में बहुत भीड़ थी।
सामान रखने की जगह में बैग फिट नहीं हो पा रहे थे। खड़े यात्री भी उस लड़के को घूर रहे थे।
लड़का परेशान-सा इधर-उधर देख रहा था।
शगुन को उस लड़के पे तरस आ गया और उसने उस लड़के को इशारा किया की एक बैग उसे पकड़ा दे।
उसने बैग शगुन को पकड़ा दिया।
एक घंटे बाद उस लड़के का स्टॉपेज आ गया।
एक घंटे बाद उस लड़के का स्टॉपेज आ गया।
शगुन ने उसको बैग पकड़ाया तो उसने मुस्कराते हुए कहा, थैंक यू आंटी।
क्या जरूरत थी आपको उसका बैग रखने की। घुटने भी दुखने लगे होंगे। शगुन के साथ बैठी महिला ने कहा।
नहीं। ..कोयु दर्द नहीं है। शगुन ने मुस्कुराते हुए संक्षिप्त-सा जबाब दिया।
अगर बैग में कोई गैरकानूनी सामान होता तो आप फंस सकती थी महिला ने शंका जताई।
हु ..बात में दम तो है पर अगर उस लड़के के नजरियों से सोचें तो उसके मन में भी तो डर होगा ना उसके बैग से कुछ चोरी होने का शगुन ने प्रश्नात्मक लहजे में कहा।
पर देखिए ना उसने मुझ पर विश्वास दिखाया।
यही तो दिक्क्त है हमारी कि हम समाज की बुराइयों की बात तो बहुत करते हैं और सोचते है उन बुराइयों का सुधर कोई और करेगा।
हम अक्सर इन किशोरों में बुराइयां ढूंढते रहते हैं।
अरे अगर हम इन्हें सुखद अनुभव देंगे तो ये भी हमे सुखद अनुभव लौटाएंगे। शगुन ने आत्मविश्वास से कहा।
जो आपके साथ बैठकर मुझे भी सुखद अनुभव मिला कह कर वह महिला मुस्कराई।
बदले में शगुन भी मुस्कराई। |