Story of a stingy devotee of Shri Krishna | Hindi Stories
एक बार एक निपट कंजूस सेठ होता है .वह एक दमड़ी भी किसी को देने को तैयार नहीं होता .यहां तक कि वह अपनी सांसे भी सोच समझ कर लेता है .उसका अपनी सांसो को नियंत्रण करने का बड़ा अनुभव होता है . कंजूस करोड़ीमल सेठ श्री कृष्ण का भक्त होता है ,एक बार स्नान करने के लिए गंगा घाट जाता है ,वहां पर श्री कृष्ण उसकी परीक्षा लेने के लिए प्रकट हो जाते हैं.
जब वह गंगा जी में डुबकी लगाने के लिए अंदर जाता है तो एकदम श्री कृष्ण जी उसके सामने एक पंडित के रूप लेकर प्रकट हो जाते हैं ,और कहते हैं यजमान मुझे कुछ दक्षिणा दे दो .कंजूस सेठ करोड़ीमल कहता है कि "श्रीमान मेरे पास कोई पैसा नहीं है."
भगवान श्री कृष्ण कहते हैं ,"कोई बात नहीं तुम संकल्प कर लो कि मुझे कुछ दक्षिणा दोगे ".वह सोचता है चलो ठीक है और वह पंडित को ₹1 का सिक्का देने का निश्चय करता है ,और सोचता है कि पंडित को कौन सा मेरा घर पता है .मैंने तो यही संकल्प किया है, जब वह अगली बार मेरे सामने आएगा तो मैं उसे एक सिक्का दूंगा.
वह गंगा घाट से स्नान करके अपने घर पहुंच जाता है और जाकर विश्राम करने के लिए लेट जाता है ,और सो जाता है .इतनी देर में दरवाजे पर कोई आहट होती है .उसकी पत्नी बाहर जाकर देखती हैं तो भगवान श्री कृष्ण पंडित का रूप लेकर उसके घर के दरवाजे के बाहर पहुंच जाते हैं .पंडित उसकी पत्नी से कहता है कि, "यजमान जी ने मुझे ₹1 का सिक्का देने का संकल्प किया था ".उन्हें बोलो मैं आ गया हूं वह सिक्का मुझे दे दो.
जब कंजूस सेठ करोड़ीमल की पत्नी जाकर उसे कहती है आपने क्या किसी से कोई संकल्प किया था. सेठ ने कहा,"सुबह एक पंडित को बोला था, तुम्हें एक ₹1 सिक्का दूंगा." पत्नी बोली कि अब वह बाहर आ गया है और अपना सिक्का मांग रहा है . सेठ बोलता है जा कर कह दो कि मैं बीमार हूं फिर कभी आना.
सेठ की पत्नी जाकर बोल देती है ,"श्रीमान मेरे पति बीमार हैं आप बाद में आ जाना." श्री कृष्ण कहते हैं ,"कोई बात नहीं मैं भी इंतजार कर लेता हूं. आप तब तक मुझे जलपान करवा दीजिए ".
पत्नी जाकर पति को बताती है कि वह पंडित ऐसे बोल रहा है . सेठ कहता है कि,"एक सिक्के के साथ-साथ अब जलपान का भी खर्चा करवाएगा."
सेठ अपनी पत्नी से कहता है कि तुम जाकर बोल दो कि सेठ जी मर गए. उसकी पत्नी कहती है कि ,"आप क्या बोल रहे हो ". वह कहता है ऐसा करना ही पड़ेगा, नहीं तो यह पंडित नहीं जाएगा .उसकी पत्नी जाकर कह देती है" श्रीमान मेरे पति मर गए हैं ."
भगवान कहते हैं, "कोई बात नहीं मैं जाकर पूरे गांव में खबर कर आता हूं .सेठ जी नहीं रहे आप अकेली कहां सारे गांव भर में घूमती रहेगी."
थोड़ी देर में सारा गांव इकट्ठा हो जाता है और सेठ की पत्नी बार-बार यही कहती है कि मेरे पति जिंदा है.वह नहीं मरे ,तो सभी कहते हैं कि यह तुम्हारी मोह माया है. इसलिए तुम्हें लग रहा है कि वह जिंदा है .क्योंकि सेठ जी का अपनी सांसो पर पूरा नियंत्रण था ,इसलिए उसने पूरा समय अपनी सांसे रोक कर रखी.
बात सेठ की शव शैय्या तक पहुंच जाती है.इतनी कंजूसी की एक सिक्का देने को तैयार नहीं मरने को तैयार है .भगवान सोचते हैं अब मैं इसका क्या करूं .जब गाँव के लोग उसे अंतिम यात्रा के लिए ले जाने लगते हैं तो वह पंडित लोगों से कहता है कि मुझे सेठ के कान में कुछ कहना है ,लोग कहते हैं कह लो वो वैसे भी वह मर गया है.
भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं ,"आंखें खोलो मैं बैकुंठ से आया हूं तुम्हारे लिए ,जो मांगना है मांग लो." सेठ खुश हो जाता है कि ,भगवान मेरे लिए बैकुंठ से आए हैं .आंखें खोलते हैं तो क्या देखते है यह तो वही पंडित हैं.
तो भगवान मुस्कुरा कर कहते हैं मांग ले जो मांगना है. सेठजी कहते हैं भगवान मुझे कुछ नहीं चाहिए .मैंने जो संकल्प किया है कि ₹1 का सिक्का दूंगा .मैं अपना संकल्प वापस लेना चाहता हूं .मैं ₹1 का सिक्का नहीं देना चाहता.
भगवान बोलते हैं, "तथास्तु." |