How did Agastya Muni become the father of South Indian mysticism? | Hindi Stories
जब आदियोगी ने अपना ज्ञान अपने पहले सात शिष्यों के साथ साझा किया तब उन्होंने, वे 112 तरीके खोजे और शिष्यों को समझाये, जिनसे कोई मनुष्य अपने अंतिम स्वभाव तक पहुँच सके यानी आत्मज्ञान पा सके। जब उन्हें लगा कि वे शिष्य, सप्तर्षि इन 112 तरीकों को समझने में समय लेंगे तो उन्होंने उन विधियों को 16 - 16 तरीकों के 7 भागों में बांट दिया और फिर उनमें से हरेक को आत्मज्ञान पाने के 16 अलग अलग तरीके ही सिखाये। कथा कहती है कि सप्तर्षियों को ये 16 तरीके सीखने में भी 84 साल लगे। इन 84 सालों में वे सब वहीं, आदियोगी के साथ ही रहे थे, जो उनके सिर्फ गुरु ही नहीं थे बल्कि सब कुछ हो गये थे।
अलग अलग तरीके सीखने के बाद जब वे इस ज्ञान से प्रकाशित हो रहे थे तब आदियोगी ने उनसे कहा-अब जाने का समय आ गया है"! इस बात से वे सब ऋषि बहुत ज्यादा भावुक हो गये क्योंकि आदियोगी के बिना वे अपने जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते थे। पर आदियोगी ने उनसे कहा अब जाने का समय है। तुम लोगों को जाकर अब ये बाकी संसार के साथ साझा करना होगा"।
जब वे लोग निकल ही रहे थे, तभी आदियोगी ने पूछा, "पर, मेरी गुरु दक्षिणा का क्या"? गुरु को दक्षिणा की ज़रूरत नहीं होती पर वे ये चाहते हैं कि जाने के समय शिष्य समर्पण के भाव के साथ जाये क्योंकि मनुष्य जब समर्पण के भाव में होता है तो वो अपनी सबसे अच्छी अवस्था में होता है। तो, आदियोगी ने उनसे गुरु दक्षिणा माँगी और ये लोग उलझन में पड़ गये
उनके पास था ही क्या जो वे गुरु को अर्पण करते? कुछ देर तक ऐसी उलझन में रहने के बाद अगस्त्य ने गुरु का इशारा समझते हुए कहा, "मेरे जीवन में सबसे कीमती चीजें जीवन के ये 16 आयाम हैं, मेरे जीवन से भी ज्यादा कीमती, जो मैंने अपने गुरु से पाये हैं, मैं वो ही आपको समर्पित करता हूँ"। इतने सारे सालों की कठोर साधना से उन्होंने जो कुछ पाया था वो आदियोगी को वापस कर दिया। इस इशारे को समझ कर बाकी के शिष्यों ने भी ऐसा ही किया।
उन्होंने दिन रात एक कर के, 84 साल तक साधना कर के जो कुछ पाया था वो बस एक ही पल में, गुरु दक्षिणा के रूप में गुरु के चरणों में रख दिया। आदियोगी ने शांत भाव से कहा, "अब जाने का समय है"! वे खाली हाथ चल पड़े, उनके पास कुछ नहीं था और यही आदियोगी की शिक्षा का सबसे महान पहलू था। चूंकि वे खाली हो कर गये तो गुरु की तरह हो गये। शिव का अर्थ है, "वो जो नहीं है"! वे ऐसे हो गये जो हैं ही नहीं। वे इस तरह के हो गये तो उन सातों के माध्यम से सभी 112 तरीके अभिव्यक्त (प्रकट) हो गये। वे चीजें जो ये सप्तर्षि कभी समझ, सीख ही नहीं पाये थे, जिनके लिये उनके पास बुद्धिमानी भी नहीं थी, वो सब उनका ही भाग हो गया क्योंकि उन्होंने जो कुछ इकट्ठा किया था, वो सब गुरु के चरणों में समर्पित कर दिया था, वो भी, जो उनके जीवन का सबसे कीमती पहलू था और बस खाली हो कर निकल पड़े थे। |