Agastya Muni cools Kartikeya's anger | Hindi Stories
कार्तिकेय शिव के पुत्र थे। एक बार वे बहुत नाराज़ हो गये और अपने पिता से दूर जाना चाहते थे। वे दक्षिण की ओर चले गये और योद्धा बन गये। कई तरह से वे एक अनोखे योद्धा थे और जीतते ही चले गये पर वे राज करने के लिये नहीं जीतते थे। उन्हें जो भी अन्यायी लगता था, उसे वे नष्ट कर देते क्योंकि उन्हें लगता था कि उनके माता - पिता ने उनके साथ अन्याय किया था तो वे हर जगह न्याय स्थापित करना चाहते थे। जब आप गुस्से में होते हैं तो सब कुछ अन्याय जैसा ही लगता है। उन्हें लगता था कि दुनिया में इतना ज्यादा अन्याय हो रहा है, तो उन्होंने बहुत से युद्ध लड़े और बहुत सारे लोगों को मारा।
तब अगस्त्य मुनि ने कार्तिकेय के गुस्से को बदला और उसे एक ऐसा साधन बनाया जिसके द्वारा उन्हें आत्मज्ञान मिल सके। फिर, कार्तिकेय को सुब्रमण्या में शांति मिली जहाँ उन्होंने आखिरी बार अपनी तलवार धो कर साफ की। कुछ दिनों के लिये वे वहाँ रुके और फिर कुमार पर्वत पर गये। वहीं खड़े होने की मुद्रा में उन्होंने महासमाधि ली। इस तरह अगस्त्य ने कार्तिकेय के गुस्से को आत्मज्ञान में बदलने का महान काम किया। |