जय गुरु देव
समय का जगाया हुआ नाम जयगुरुदेव मुसीबत में बोलने से जान माल की रक्षा होगी ।
परम सन्त बाबा उमाकान्त जी महाराज, उज्जैन (मध्य प्रदेश)
पिता के श्राद्ध में भक्त नरसी जी पर श्री कृष्ण की कृपा की कथा (Pita Ke Shraddh Mein Bhakt Narasi Jee Par Shree Krshn Kee Krpa Kee Katha)

एक बार नरसी मेहता की जाति के लोगों ने उनसे कहा कि तुम अपने पिता का श्राद्ध करके सबको भोजन कराओ. नरसी जी ने भगवान श्री कृष्ण का स्मरण किया और देखते ही देखते सारी व्यवस्था हो गई. श्राद्ध के दिन कुछ घी कम पड़ गया और नरसी जी बर्तन लेकर बाजार से घी लाने के लिए गए. रास्ते में एक संत मंडली को इन्होंने भगवान नाम का संकीर्तन करते हुए देखा. नरसी जी भी उसमें शामिल हो गए. कीर्तन में यह इतना तल्लीन हो गए कि इन्हें घी ले जाने की सुध ही न रही. घर पर इनकी पत्नी इनकी प्रतीक्षा कर रही थी.

भक्त वत्सल भगवान श्री कृष्ण ने नरसी का वेश बनाया और स्वयं घी लेकर उनके घर पहुंचे. ब्राह्मण भोज का कार्य सुचारू रूप से सम्पन्न हो गया. कीर्तन समाप्त होने पर काफी रात्रि बीत चुकी थी. नरसी जी सकुचाते हुए घी लेकर घर पहुंचे और पत्नी से विलम्ब के लिए क्षमा मांगने लगे. इनकी पत्नी ने कहा, ‘‘स्वामी! इसमें क्षमा मांगने की कौन-सी बात है? आप ही ने तो इसके पूर्व घी लाकर ब्राह्मणों को भोजन कराया है.’’

नरसी जी ने कहा, ‘‘भाग्यवान! तुम धन्य हो. वह मैं नहीं था, भगवान श्री कृष्ण थे. तुमने प्रभु का साक्षात दर्शन किया है. मैं तो साधु-मंडली में कीर्तन कर रहा था. कीर्तन बंद हो जाने पर घी लाने की याद आई और इसे लेकर आया हूं.’’ यह सुन कर नरसी जी की पत्नी आश्चर्यचकित हो गईं और श्री कृष्ण को बारम्बार प्रणाम करने लगी.