एक बार नागरिको ने नरसी जी की बेइज्जती करने के लिए कुछ तीर्थयात्रीयो को नरसी के घर भेज दिया और द्वारिका के किसी सेठ के ऊपर हुंडी लिखने के लिए कहा . नरसी के वहा कोई पहचान वाला ना होने पर भी साँवल सेठ कर नाम पर चिट्टी लिखी. पहले तो नरसी जी ने मना करते हुए कहा की मैं तो गरीब आदमी हूँ, मेरे पहचान का कोई सेठ नहीं जो तुम्हे द्वारका में हुंडी दे देगा, पर जब साधु नहीं माने तो उन्हों ने कागज ला कर पांच सौ रूपये की हुंडी द्वारका में देने के लिये लिख दी और देने वाले (टिका) का नाम सांवल शाह लिख दिया.
(हुंडी एक तरह के उस समय आज के डिमांड ड्राफ्ट के जैसी होती थी. इससे रास्ते में धन के चोरी होने का खतरा कम हो जाता था. जिस स्थान के लिये हुंडी लिखी होती थी, उस स्थान पर जिस के नाम की हुंडी हो वह हुंडी लेने वाले को धन दे देता था.)
द्वारका नगरी में पहुँचने पर संतों ने सब जगह पता किया लेकिन कहीं भी सांवल शाह नहीं मिले. सब कहने लगे की अब यह हुंडी तुम नरसीला से ही लेना.
उधर नरसी जी ने उस धन का सामान लाकर भंडारा देना शुरू कर दिया. जब सारा भंडारा हो गाया तो अंत में एक वृद्ध संत भोजन के लिये आए. नरसी जी की पत्नी ने जो सारे बर्तन खाली किये और जो आटा बचा था उस की चार रोटियां बनाकर उस वृद्ध संत को खिलाई. जैसे ही उस संत ने रोटी खाई वैसे ही उधर द्वारका में भगवान ने सांवल शाह के रूप में प्रगट हो कर संतों को हुंडी दे दी. |