परम पूज्य बाबा उमाकान्त जी महाराज ने दिनांक 9 सितम्बर 2023 को सायं 7 बजे बाबा जयगुरुदेव आश्रम, ओसियां रोड, दईजर, जोधपुर, राजस्थान में सत्संग सुनाते हुए कहा की-
His Holiness Baba Umakant Ji Maharaj, while delivering a satsang on 9th September 2023 at 7 pm at Baba Jaigurudev Ashram, Osian Road, Daijar, Jodhpur, Rajasthan, said that-
भोग और योग एक साथ कैसे हो सकता है ? बाबाजी ने राजा जनक के दृष्टांत से समझाया
How can Bhog and Yoga happen together? Babaji explained with the example of Raja Janak
कहते हैं भोग और योग एक साथ नहीं हो पाता है। राजाओं का जीवन भोगी जीवन होता है। भोगी किसको कहते हैं ? बढ़िया खाए, बढ़िया बिस्तर पर सोए, अच्छे महल में रहे, नौकर चाकर तरह -तरह के हों, जिस चीज की इच्छा करें वह चीज हाजिर हो जाए, ऐसा जीवन जिनका होता है उनको भोगी कहा जाता है। वैसे ही राजा जनक भी भोग के स्थान पर थे लेकिन जो भी खाते थे, कपड़े पहनते थे, जहां सोते थे उसको वह महसूस नहीं करते थे, क्योंकि उनका ध्यान गुरु के वाक्य में लगा हुआ था।
It is said that enjoyment and yoga cannot happen together. The life of kings is a life of enjoyment. Whom is called a Bhogi? Those who have good food, sleep on a good bed, live in a good palace, have different types of servants, whatever they desire is available to them, those who have such a life are called Bhogi. Similarly, King Janak was also at the place of enjoyment but he did not realize what he ate, what clothes he wore, where he slept, because his attention was focused on the Guru “s words.
वे धार्मिक विचारधारा के थे। एक बार उनके अंदर इच्छा जगी कि कुछ ज्ञान प्राप्त किया जाए। एक होता है किताबी ज्ञान, एक होता है अंदर का ज्ञान। किताबों को पढ़ा, उपदेश लोगों का सुना, किताबी ज्ञान उनको हुआ तो उनके अंदर इच्छा हुई कि प्रभु का दर्शन किया जाए, प्रभु प्राप्ति की जाए। सोचने लगे कैसे करें? राजा लोगों को इस बात का अहंकार रहता है कि हम जो चीज चाहेंगे वह हो जाएगा। कहते हैं “गुड़ जहां रहता है, चींटे वहां अपने आप आ जाते हैं “ उन्होंने सोचा भोज करें, भोजन खिलाएं और दक्षिणा दें।
He was of religious ideology. Once a desire arose within him to acquire some knowledge. One is bookish knowledge and the other is internal knowledge. When he read books, listened to people “s sermons, acquired bookish knowledge, he had a desire to see God and attain God. Started thinking how to do? People are proud of the fact that whatever they want will happen. It is said, “Where there is jaggery, ants automatically come there “. He thought of hosting a feast, serving food and giving Dakshina.
उन्होंने सोचा कि भोज करें, भोजन खिलाएं और दक्षिणा दें तो यह जितने भी साधु हैं, महात्मा हैं, विद्वान हैं ये सब आ जाएंगे और फिर मैं सवाल रख दूंगा और वह सवाल का जवाब जो दे देंगे उनको भरपूर इनाम दे दूंगा। उन्होंने एक हजार गायें बुलवाई। जब एक हजार गायें आ गई तो हुक्म दिया की एक-एक के सींग पर बीस-बीस अशर्फियां बंधवा दो और ऐलान किया कि राज्य में जितने भी साधु-महात्मा, विद्वान हैं सब लोग यहां आ जाएं। लोग आ गए,भोज कराया और उसके बाद सवाल किया कि प्रभु के बारे में, भगवान के बारे में समझाओ, भगवान है कि नहीं, कैसे हैं? और पूर्ण ज्ञान कैसे हो सकता है? तो सब अपनी-अपनी भाषा में, अपने-अपने तौर तरीके से उनको समझाने लगे लेकिन राजा संतुष्ट नहीं हुए तब महात्मा याज्ञवलक्य ने इस बात के लिए तो संतुष्ट किया कि शत प्रतिशत वह प्रभु है और प्रभु की माया है, सब उसी की खिल्कत है, लेकिन जब राजा जनक ने कहा कि हमको बोध कराओ, ज्ञान कराओ, दिखाओ तो इसमें वह सफल नहीं हो पाए।
He thought that if we have a feast, serve food and give Dakshina, then all these sages, mahatmas and scholars will come and then I will put a question and I will give full reward to those who answer the question. He called one thousand cows. When one thousand cows arrived, he ordered that twenty Ashrafiyas should be tied on the horns of each one and announced that all the sages, mahatmas and scholars in the state should come here. People came, had a feast and then asked questions about God, explain about God, whether God exists or not, how is He? And how can there be complete knowledge? So everyone started explaining to him in their own language, in their own way, but the king was not satisfied, then Mahatma Yajnavalkya satisfied him that 100 percent he is God and is God “s illusion, everything is his creation. , but when King Janak said to enlighten us, give us knowledge, show us, he could not succeed in this.
फिर इन्होंने पूछा कि सफलता कैसे मिलेगी? तो साफ-साफ उन्होंने कह दिया कि हमसे ज्यादा जो ज्ञानी और अनुभवी होगा, जो अभ्यास करता हो,जिसको बोध हो गया हो, जिसके अंदर पॉवर हो वह आपको बोध करा सकता है। तब उन्होंने फिर से एक हजार गायें बुलवाई और असर्फी बंधवाकर फिर ढिडोंरा पिटवाया कि पिछली गोष्ठी में आने से अगर कोई रह गया हो तो अबकी बार आ जाओ, अबकी बार कोई बोध करा दो, ज्ञान करा दो। काफी इंतजार के बाद अष्टावक्र आए।
Then he asked how to achieve success? So he clearly said that someone who is more knowledgeable and experienced than us, who practices, who has attained enlightenment, who has power within him, can enlighten you. Then he again called a thousand cows and after tying them as a scarf, he again beat the drums saying that if anyone had missed coming to the previous seminar, then come this time, this time someone should enlighten, impart knowledge. After a long wait Ashtavakra came.
अष्टावक्र शरीर से टेढ़े-मेढे थे लेकिन महात्मा थे। वह सीढ़ी पर चढ़ कर के गए और मंच पर बैठ गए, ऊंचा मंच बना हुआ था। सब लोग उनको देखकर हंस पड़े, देखते रहे हंसते रहे ,लोग बोले बंदर पहुंच गया, ये पागल कहां पहुंच गया है! ये क्या बताएगा? तब अष्टावक्र ने कहा कि यहां तो बहुत अच्छे-अच्छे मोची बैठे हुए हैं। लोगों ने कहा मोची ? मोची कैसे कह दिया? एक से एक विद्वान हैं इसमें देखो यह राज दरबार के विद्वान हैं, यह मंत्री हैं, यह राजा साहब हैं और तुमने इनको मोची कह दिया!
Ashtavakra was crooked in body but was a Mahatma. He climbed the stairs and sat on the stage, which had a high platform. Everyone laughed after seeing him, kept laughing, people said, the monkey has reached, where has this madman gone! What will this tell? Then Ashtavakra said that many good cobblers are sitting here. People said cobbler? How did the cobbler say? Look, there are many scholars in this, this is a scholar of the royal court, this is a minister, this is a king and you called him a cobbler!
तब उन्होंने कहा कि मोची को ही चमड़े की पहचान होती है और तुम लोगों ने मेरे चमड़े को देखा। इस चमड़े के अंदर इस हड्डी, मांस के अंदर क्या चीज है? इसका तुमको नहीं पता चला तब राजा जनक को समझ में आया। कहा बात तो सही कह रहे हैं जैसे याज्ञवलक्य ने हमको समझाया बाहर से और अंदर में हमको बोध ज्ञान नहीं हुआ, ऐसे इनके अंदर हो सकता है, इनसे अब हम वो ज्ञान लेंगे।
Then he said that only the cobbler knows the leather and you guys saw my leather. What is there inside this skin, this bone, this flesh? You did not know about this, then King Janak understood. You are right in what you said, as Yajnavalkya explained to us that we did not get the knowledge from outside and from inside, similarly it can happen inside them, now we will take that knowledge from them.
तब राजा ने कहा महाराज आप बोध करा सकते हो? तो बोले मैं तो आया ही इसलिए हूं कि कहीं तुम यह ना सोच लो कि इस धरती पर कोई इस ज्ञान वाला रह ही नहीं गया हो। प्रभु की महिमा, उसकी गरिमा घट जाएगी, उसकी व्यवस्था में फर्क पड़ जाएगा इसलिए मैं बोध कराने के लिए ही आया हूँ। राजा जनक ने कहा कि कितनी देर लगेगी? तो आप बताओ राजा कितने देर में चाहते हो? राजा बोले घोड़े के रकाब पर पैर रखते-रखते मेरी दिव्य दृष्टि खुल जानी चाहिए। अष्टावक्र बोले, खुल तो जाएगी लेकिन भरपूर दक्षिणा देनी पड़ेगी, राजा बोले दक्षिणा दे दूंगा जो मेरे पास होगा।
Then the king said, Maharaj, can you make me understand? So he said, I have come only so that you may not think that there is no one left on this earth with this knowledge. The glory of God, His dignity will decrease, there will be a difference in His system, that is why I have come only to make you aware. King Janak said how long will it take? So tell me Raja, how much time do you want? The king said, my divine vision should open as soon as I step on the stirrup of the horse. Ashtavakra said, it will be opened but full Dakshina will have to be given. The king said, I will give whatever Dakshina I have.
महात्मा बोले राजा, दक्षिणा में मैं वही मांगूंगा जो तेरी औकात में हो, राजा जनक ने कहा ठीक है। तब अष्टावक्र जी ने कहा कि राजन! तुम अपना तन-मन और धन मुझे दे दो। राजा बड़ी सोच में पड़ गया कि फिर तो मेरे पास क्या रह गया ? सब कुछ तो ऋषि का हो जाएगा, न मेरे बीवी-बच्चे, न मेरा खजाना, न मेरी फौज, न मेरी प्रजा, न मेरी ये धरती, हमारा महल, सिंहासन कुछ नहीं रह गया, यह तो सब ऋषि का हो जाएगा, गुलामी करनी पड़ेगी और गुलामी में क्या-क्या करना पड़ेगा। लेकिन राजा ने पढ़ा हुआ था कि-
सेवक सुख चह मान भिखारी। व्यसनी धन, सुभ गति व्यभिचारी।।
Mahatma said, King, I will ask for Dakshina only what is within your means, King Janak said, okay. Then Ashtavakra ji said, King! You give me your body, mind and wealth. The king was deeply thoughtful, then what was left with me? Everything will belong to the Rishi, neither my wife and children, nor my treasure, nor my army, nor my people, nor this land of mine, our palace, throne will be left as nothing, all this will belong to the Rishi, to be enslaved. What will have to be done and what will have to be done in slavery. But the king had read that-
Servant happiness, beggar cheering. Addicted to money, adulterer to good fortune.
अर्थात सेवक को सुख नहीं होता है, व्यसनी के पास धन्य नहीं रुकता है , व्यभिचारी को मुक्ति और मोक्ष नहीं होती है नरकों में मार खाने के लिए जाना ही पड़ता है। राजा बड़ी देर तक सोचते रहे। फिर ऋषि बोले राजा सोच, जल्दी कर जीवन का समय निकला जा रहा है, समय किसी का इंतजार नहीं करता है इसलिए नेक काम में देरी नहीं करनी चाहिए। यह समय जो निकल जाएगा फिर वापस नहीं आएगा।
That is, a servant does not get happiness, an addict does not remain blessed, an adulterer does not get freedom and salvation, he has to go to hell to be beaten. The king kept thinking for a long time. Then the sage said, King, think quickly, the time of life is running out, time does not wait for anyone, hence one should not delay in doing a good deed. This time that will pass will never come back.
राजा ने सोचा कि कोई बड़ी चीज पाने के लिए छोटी चीज की कुर्बानी तो करनी ही पड़ती है और अगर प्रभु मिल गया, दुनिया बनाने वाला मिल गया तो फिर हमको दुनिया की चीजों के लिए तरसना नहीं पड़ेगा तब फिक्र किस बात की तो राजा ने कह दिया कि तन, मन ,धन सब आपको दे दिया। तो अष्टावक्र ने कहा यह जो लोग जूते उतार कर आए हैं वहां बैठो तो वह वहां बैठ गया। अब उसको क्या फिकर, अब उसका क्या रह गया, अहंकार ख़त्म हो गया क्योंकि-
लघुता से प्रभुता मिले, प्रभुता से प्रभु दूर। चींटी चावल ले चली, हाथी मस्तक धूल।।
The king thought that to get something big, we have to sacrifice small things and if we find God, the creator of the world, then we will not have to yearn for worldly things, then what are we worried about? The king said Gave that I gave you my body, mind and wealth. So Ashtavakra said that these people who have taken off their shoes should sit there, so he sat there. Now what does he care about, what is left for him now, his ego is gone because-
Smallness gives dominance, dominance keeps God away. The ant took away the rice, the elephant took away the dust.
मतलब छोटे बन जाओगे, लघुता आ जाएगी काम बन जाएगा। जब राजा के पास कुछ नहीं रह गया तो उसका अहंकार खत्म हो गया, अब तो वह ऋषि अष्टावक्र का गुलाम हो गया। अब तो
“जाहि विधि राखे गुरु, ताहि विधि रहिए “।
Meaning you will become small, smallness will come and work will be done. When the king had nothing left, his ego vanished and now he became a slave of sage Ashtavakra. now
“Jahi Vidhi Rakhe Guru, Tahi Vidhi Raheye “.
ऋषि ने कहा उठ जाओ राजा और सारे जूते को इकट्ठा कर लो, गट्ठर बांध लो, सर पर रखो और थोड़ी देर बाजार में घूम कर आओ। अब राजा बढ़िया कपड़े पहन कर, ताज लगाकर, जूते का गट्ठर लेकर चल पड़े। लोग देखकर आश्चर्य कर रहे थे कि राजा को क्या हो गया! क्या राजा पागल हो गए? उनका दिमाग खराब हो गया ? प्रजा सोच विचार करने लग गई, लोग पीछे-पीछे चलने लगे। राजा ने वापस आकर जूते का गट्ठर रख दिया। कोई देख कर मुस्कुरा रहा था तो कोई आश्चर्य कर रहा था कि ऋषि ने कौन सा मंत्र दे दिया कि राजा के अंदर फकीरी आ गई, अपनी जिंदगी भूल कर, मान सम्मान को ताक पर रखकर जूते ढोने लग गया।
The sage said, get up, king, collect all the shoes, tie them in a bundle, put them on your head and roam around in the market for a while. Now the king dressed in fine clothes, wore a crown and set out with a bundle of shoes. People were wondering what happened to the king! Has the king gone mad? Has he lost his mind? The people started thinking, people started following him. The king came back and kept the bundle of shoes. Some were smiling at the sight, while others were wondering what mantra the sage had given that the king became beggar, forgetting his life, keeping his honor and respect at stake, he started carrying shoes.
तब राजा ने किसी की तरफ देखा ही नहीं, सोचा देखेंगे ही नहीं तो कोई परेशानी नहीं। राजा ने आंख बंद कर ली और ऋषि देख रहे हैं। आंख बंद कर ली, तन दे दिया और धन की भी फिक्र नहीं रही। सबसे मुख्य चीज धन ही है, जिसको जड़-चेतन माया कहा गया। यही आदमी के लिए, साधक के लिए बाधक है। तन और धन दे दिया और कहा अब हमारा कुछ नहीं रह गया। जैसे यह रखेंगे वैसे रहना पड़ेगा।
Then the king did not look at anyone, he thought that if he will not look then there will be no problem. The king closed his eyes and the sage was watching. I closed my eyes, gave my body and didn “t even worry about money. The most important thing is money, which is called inanimate and conscious Maya. This is an obstacle for the man, for the seeker. Gave away our body and wealth and said that now we have nothing left. It will have to remain as it is.
अगर यह भूखा रखेंगे तो, भूखा रहना पड़ेगा। सब दे दिया तो क्या रह गया मेरे पास। लेकिन मन में आया - असलहों का क्या होगा, घोड़ों का, जानवरों का, प्रजा का क्या होगा ? बच्चे भी मेरे नहीं रहे। तब ऋषि ने डांटा - फटकारा। ऐ राजा! क्या कर रहा है ? जब तूने तन दे दिया, धन दे दिया, तो मन को उधर क्यों लगा रहा है? अब उसने सोचा मन तो परेशान करता रहेगा, मन कभी जल्दी रुकने वाला नहीं है, मन पर अब काबू पाना चाहिए।
If you keep him hungry, he will have to remain hungry. If I give everything, what is left with me? But it came to mind - what will happen to the weapons, horses, animals, people? Even my children are no more. Then the sage scolded. O king! What are you doing ? When you have given your body and money, then why are you concentrating your mind there? Now he thought that the mind will keep troubling him, the mind is never going to stop soon, the mind should be controlled now.
चंचल चपल मन मनाऊं मैं कैसे । बता दो गुरु तुमको पाऊं मैं कैसे ।।
How can I convince my fickle mind? Guru, tell me how I can find you.
चंचलता इसकी जा ही नहीं रही है। चंचल मन को कैसे मनाऊं ?
Its playfulness is not going away. How to convince a fickle mind?
सोइ जानइ जेहि देहु जनाई। जानत तुम्हहि तुम्हइ होइ जाई।।
Soi Jaani Jahi Hihu Jaani. Knowing you is yours.
जब तुम्हारी कृपा होगी दया होगी।
When you are kind, there will be mercy.
बिन गुरु भक्ति शब्द में पचते, सो प्राणी तू मूर्ख जान।
शब्द खुलेगा गुरु मेहर से, खींचे सुरत गुरु बलवान।।
गुरु ही मन को मारकर संतुष्टि देंगे। वह दया करेंगे तब सुरत खिंचेगी , मन रुकेगा, नहीं तो मन ऐसे रुकने वाला नहीं है।
Without a Guru, if you digest the words of devotion, consider yourself a fool.
Words will open with the grace of Guru, draw face Guru is strong.
Only Guru will give satisfaction by killing the mind. If he shows mercy, then the mood will calm down and the mind will stop, otherwise the mind is not going to stop like this.
बड़ा बैरी यह मन घट में ।
इसी को जितना कठिना ।।
लेकिन जब गुरु की दया हुई-
This big enemy is in my mind.
As much difficulty as this.
But when the Guru showed mercy-
जा पर दया गुरु की हुई । ता पर कृपा करें सब कोई ।।
But the Guru took pity on me. Everyone please be kind to me.
गुरु की दया कृपा हो गई जैसे आपको कील गाड़नी है, एक हथौड़ी आपने मारी और नहीं गड़ी, फिर दूसरा मारा और लगातार चोट दी तो कील अंदर दीवार में चली जाएगी। ऐसे बार-बार जब चोट दी जाती है मन पर तब यह मन रुकता है, नहीं तो यह भागता रहता है। राजा को उन्होंने कहा अब जब तू सोच रहा है कि सब ऋषि का हो गया तो तेरा मन भी मेरा हो गया, तो मेरी तरफ क्यों नहीं देखता है।
Guru “s mercy has become like grace, it is like you have to drive a nail, if you hit one hammer and it does not hit, then hit another and hit continuously, then the nail will go inside the wall. When the mind is hurt again and again, it stops, otherwise it keeps running. He said to the king, now when you are thinking that everything has become the Rishi “s and your mind has also become mine, then why don “t you look at me.
आंखों से जब देखा तो कहते हैं कि संतों की दया, दृष्टि से होती है, छूने से होती है और वाणी से होती है। बहुत लोगों को सत्संग के द्वारा संतों ने बदल दिया। बहुत से लोगों को गुरु महाराज ने अपराध से छुड़वा दिया, समझा करके जीवात्मा का काम बना दिया। वाणी से सत्संग सुना कर और स्पर्श से जब गुरु महाराज सर पर हाथ रखते थे, तो चेहरा खिल जाता था। आदमी कूदने लगता था। इस तरह दया करते थे। गुरु महाराज ने दया खूब बरसाई, तब इतनी बड़ी संगत खड़ी हुई।
When seen with eyes, it is said that the mercy of saints is seen, is seen through touch and is seen through speech. Many people were converted by the saints through satsang. Guru Maharaj freed many people from crime by convincing them to do the work of the soul. When Guru Maharaj placed his hand on the head after narrating satsang through speech and through touch, the face used to blossom. The man started jumping. Used to show mercy like this. Guru Maharaj showered a lot of mercy, that “s why such a large gathering stood up.
तेरी नजरों में कोई करामात है, होती हर समय अमृत की बरसात है।
There is some magic in your eyes, there is a rain of nectar all the time.
तो जब नजरों की तरफ एकदम से देखा, तो उन्होंने सुरत को खींच लिया । निकल गया राजा, सुरत खिंच गई और ऊपरी लोगों का आनंद राजा लेने लग गया तो अब ऋषि कह रहे हैं लौट आ राजा- लौट आ, तो राजा कहता है अब मत बुलाओ बहुत गंदगी है, बड़ी बदबू है, दम घुट जाता है वहां पर, अब हमको यहां से वापस मत बुलाओ। ऋषि ने सोचा कि अब तो लोग चिल्लाने लगेंगे कि हमारे राजा को मार दिया।
So when he looked straight into the eyes, he pulled Surat. The king went out, his face was drawn and the king started enjoying the upper people, so now the sages are saying come back king - come back, then the king says don “t call now, there is a lot of dirt, there is a big smell, one gets suffocated there. Now don “t call us back from here. The sage thought that now people will start shouting that our king has been killed.
अभी तक तो ये राजा से जूता ढुलवा रहा था तब कह रहे थे कि देखो कौन सा जादू फेर दिया कि जूता उठा करके सर पर रखकर चल दिया, ऋषि के आदेश से कहीं ऐसा ना हो कि यह गद्दी पर बैठ जाएं, राजा को निकाल दें, यह प्रजा सोच रही थी। और अब कहीं ऐसा ना सोचने लग जाए मार दिया राजा को।
Till now he was getting the king to remove his shoe, then they were saying, look what kind of magic he has done that he picked up the shoe and put it on his head and went away, on the orders of the sage, lest he should sit on the throne and oust the king. , these people were thinking. And now he might start thinking that he has killed the king.
तब अष्टावक्र ने राजा की सुरत की डोर को खींच दिया तो राजा फिर आ गया अब यही फिर यहां का दृश्य देखने लग गया। यहां वहां का देखने लगा तब ऋषि ने कहा जा राजा अब तेरा तन, तेरा मन, तेरा धन सब तुझको वापस दे दिया, मुझे नहीं चाहिए, मुझे अगर तेरे तन की जरूरत होती, तेरे राज्य की जरूरत होती तो मुझको यह ज्ञान न होता। हमको यह सब कुछ नहीं चाहिए यह हमारे लिए मिट्टी जैसा है, तुझको मैं सब देता हूं।
Then Ashtavakra pulled the string of the king “s face and the king came again and started seeing the scene here again. When he started looking here and there, the sage said, King, now your body, your mind, your wealth have all been given back to you, I do not want it, if I needed your body, needed your kingdom, I would not have had this knowledge. We don “t need all this, it is like soil for us, I give you everything.
जा तू राज भी कर और आनंद भी ले, तो राजा जनक राज करते हुए भी स्वाद किसी चीज का नहीं जान पाए। आपको सुनाया गया होगा कि शुकदेव राजा जनक के यहां गए थे नामदान लेने लेकिन वह नामदान ले ही नहीं रहे थे उनसे। तो उनको राजा जनक ने ज्ञान करा दिया था, बोध करा दिया था।
Go and rule and also enjoy, then King Janak could not taste anything even while ruling. You must have been told that Shukdev had gone to King Janak “s place to collect Namdaan but he was not accepting Namdaan from him. So King Janak had given him knowledge and understanding.
इस तरह से जब यह सोच लें ध्यान करते समय, भजन करते समय कि अब हमारा कुछ नहीं है, ना हमारा शरीर है, ना मेरी बीवी है, ना मेरे बच्चे हैं, ना मेरे पति परमेश्वर हैं, और ना ही मेरे मां-बाप हैं, और ना ही मेरी दुकान है, ना ही मेरी नौकरी है, मेरा कुछ नहीं है इस दुनिया में, मैं हूं ही नहीं, मेरा कान, हाथ, पैर, शरीर कुछ नहीं है जो कुछ है बस वह प्रभु हैं, प्रभु तक पहुंचाने का रास्ता बताने वाले रास्ते पर चला करके प्रभु के पास पहुंचाने वाले हमारे गुरु हैं। उन्हीं को अगर याद रखेगा, इसी चीज को अगर याद रखोगे प्रेमियों, बच्चे और बच्चियों तो घोड़े के रकाब पर क्या, चुटकी बजाने में काम हो जाएगा। जब गुरु की दया हो जाएगी। कहा गया न कि-
गुरु को मानुष जानते, ते नर कहिए अंध।
महा दुखी संसार में, आगे यम के फंद।।
In this way, while meditating and chanting, think that now I have nothing, neither my body, nor my wife, nor my children, nor my husband is God, nor my parents. , Neither do I have a shop, nor do I have a job, I have nothing in this world, I do not exist, my ears, hands, legs, body are nothing, all that exists is God, to take me to God. Our Guru is the one who shows us the path and takes us to God. If you remember them only, if you remember this only, lovers, children and girls, then the work will be done in a pinch, not only on the stirrup of the horse. When the Guru has mercy. It was said that-
Humans know Guru, those humans are called blind.
In a very sad world, Yama “s trap lies ahead.
यह जो गुरु महाराज का फोटो लगा हुआ है, यह मामूली नहीं थे। यह तो चले गए लेकिन सबकी आत्मा की डोर के साथ यह जुड़े हुए हैं। आप सबके साथ यह जुड़े हुए हैं इसलिए बराबर गुरु को मस्तक पर सवार रख करके चलने की जरूरत है।
The photo of Guru Maharaj that is displayed was not ordinary. They are gone but they are connected with the thread of everyone “s soul. You are connected with everyone, hence there is a need to walk with the Guru on your head.
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