उत्तर - सभी धर्म पुस्तकों में नाम की महिमा बताई गयी है नाम से मतलब राम नाम, कृष्ण नाम से नहीं या और किसी नाम से नहीं है । 'नाम' कहते हैं आकाशवाणी को, देववाणी को, शब्द को, Spiritiual Sound को जो हर क्षण मनुष्य मन्दिर में बज रही है । इस नाम की महिमा कोई भी नहीं कर सकता है ।
रामायण में लिखा है - "कहा कहूं लगि नाम बड़ाई, राम न सकहिं नाम गुण गाई'
यह नाम यह आवाज मनुष्य रूपी मन्दिर में दोनोंआखों के ऊपर तक हर क्षण आ रही है । इसी आवाज को पकड़कर जीवात्मा ऊपर के लोकों में जाती है | साधक इसी नाम को पकड़कर स्वर्ग बैकुण्ठ ईश्वर धाम आदि ऊपर के लोकों में जाते हैं और देवी देवताओं का दर्शन दीदार करते हैं, बातें करते हैं । नाम का भेद सन्त सतगुरु ही मनुष्यों को बताते हैं ।
सारा राज शरीर के आंखों के ऊपर वाले भाग में है और परमात्मा की खोज वहीं पर और उसी के अन्दर करनी है । परमात्मा के पास जाने का रास्ता अन्दर से ही गया हुआ है, बाहर कहीं नहीं है और भगवान भी अन्दर में ही मिलेगा बाहर कहीं नहीं मिलेगा | आत्मा चेतन है और परमात्मा भी चेतन है और चेतन ही चेतन का दर्शन कर सकता है । ये जड़ आंखों परमात्मा के ज्योति स्वरूप को बर्दाश्त नहीं कर सकती, इतना प्रकाश उनमे है आत्मा जीवन काल में शरीर से अलग होकर आसमानों की सैर करती है स्वर्ग, वैकुण्ठ आदि लोकों में आ जा सकती है, देवी देवताओं का दर्शन दीदार कर सकती है । नाम के अलावा कुछ भी तुम देखते हो सब असत्य है, झूठ पसारा है । नाम किसी सन्त सतगुरु की कूंपा से ही मिल सकता है नामदान सबसे बड़ा दान है । जाने अनजाने अन्त में सब यह बोलते हैं कि राम नाम सत्य है, सत्य बोलो मुक्ति है| नाम ही जीवात्मा को खींचकर शरीर से अलग कर देता है फिर मृत्यु हो जाती है । |