उत्तर - खाने-पीने के लिए समय है, दुकान दफ्तर के लिए समय है और सभी कामों के लिए समय निकल आता है लेकिन अपनी आत्मा के छुटकारे के लिए समय तुम्हें नहीं मिलता है । भजन ही अपना काम है और दुनियां के जितने भी काम हैं सब इन्द्रियों के काम हैं, पराये काम हैं भजन करना तुम्हारे हाथ में है | गुरु की सहायता सदा रहती है। गुरु तुमसे दूर नहीं वह तुम्हारे अन्दर तीसरे तिल में विद्यमान हैं न दुनियां के कामों को करते हुए तुम्हें भजन के लिए भी प्रतिदिन समय निकालना चाहिए । इसकी उपेक्षा नहीं करनी चाहिए ।
अगर पूरा समय न दे सको तो जितना हो सके उतना दो । पाँच मिनट, दस मिनट, आधा घण्टा ही सही हर रोज बैठना आवश्यक है । भजन ही मौत के बाद साथ जाता है और तुम्हारे लेखे का है बाकी सब कुछ यही रह जाता है | बीते हुए दिन फिर बापस न आएंगे इसलिए प्रेम, विश्वास के साथ लगातार आगे बढ़ने की कोशिश करनी चाहिए । |