उत्तर - इसमें तुम्हारे मन का कसूर है | तुम्हें सत्संग नहीं मिलता, मन पर कोई लगाम नहीं, जहाँ चाहता है भागता रहता है, संसार के सामानों के लिए अनावश्यक तृष्णा और भजन को गैर जरूरी समझना ये सब कारण हैं जिससे भजन नहीं हो पाता है । मन को लगाकर सुमिरन करो तब एकाग्रता आएगी और जब एकाग्रता आएगी तब सुरत का फैला प्रकाश धीरे-धीरे सिमटने लगेगा । सिमटाव होने पर आत्मा शरीर को छोड़ना शुरू कर देती है और शरीर सुन्न होने लगता है। शरीर के नौ द्वारों से जब जीवात्मा का प्रकाश खिंच जाएगा तब दोनों आँखों के पीछे दसवें द्वार से वो निकल कर बाहर चली जायेगी और ऊपर के मण्डलों का भ्रमण करने लगेगी |
लेकिन यह सब तभी होगा जब तुम लगन और मेहनत के साथ सुमिरन, ध्यान और भजन करोगे तभी तो मन फैला हुआ है और संसारी वस्तुओं को आध्यात्मिक वस्तुओं के मुकाबले अधिक महत्वपूर्ण समझता है | सांसारिक विद्या मन को फैलाती है और परा विद्या मन का सिमटाव करती है | |