उत्तर:- अगर तुम आध्यात्मिक अभ्यास के लिए समय नहीं बचा सकते हो तो इसमें तुम्हारा अपना ही नुकसान है।
अनुभव नहीं हो रहा या कम हो रहा आदि कारणों से निराश होकर साधन-भजन छोड़ना नहीं चाहिए क्योंकि मन को खड़ा करना एक दो दिन का काम नहीं बल्कि वर्षों का काम है। मन का ही सारा खेल है। मन ही पर्दा है और इसके पीछे ही परमात्मा खड़ा है। इसलिए इससे बराबर जूझते रहना चाहिए जब तक ये पकड़ में न आ जाय।
जिस वक्त 'नाम' इसको मिल जायेगा यानी आध्यात्मिक संगीत या बाजे इसको सुनने को मिलेंगे उसी वक्त से मन वश में होना शुरू हो जाएगा। जब नाम का नशा चढ़ता है तब वो कभी उतरता नहीं है। जिस दिन जिस घड़ी नाम का सम्पर्क जीवात्मा से हो जाता है फिर यह होश में आ जाती है और मन उसके आधीन हो जाता है, अपनी भागदौड़ बन्द कर देता है। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए पहले भजन करो फिर दुनियां के और काम ।
Question:- Swami ji! Due to getting entangled in worldly affairs, I get less time for bhajan, what to do?
Answer:- If you cannot save time for spiritual practice then it is your own loss.
One should not give up Sadhana-Bhajan due to disappointment due to lack of experience or lack of experience, because strengthening the mind is not a task of one or two days but a task of years. It's all a game of the mind. The mind is the curtain and God stands behind it. Therefore, one should keep fighting with it until it is caught.
The moment it gets 'Naam' i.e. it will start listening to spiritual music or musical instruments, from that very moment the mind will start to be controlled. When one becomes intoxicated with the name, it never subsides. The day the name comes in contact with the soul, it becomes conscious and the mind becomes subordinate to it and stops its running around. To achieve this goal, first do bhajan and then do other worldly work. |