उत्तर:- मन कोई खिलौना नहीं है कि जब चाहें उसे इधर से उधर खड़ा कर दें। युगों युगों से मन का स्वभाव पड़ा हुआ है और उस आदत को हटाना कोई दिन, महीने और साल हा काम नहीं है। यह तो जीवन भर की लड़ाई है। जिन्होंने मन से टक्कर ली है या ले रहें हैं वे ही जानते हैं कि मन को जीतना कितना कठिन काम है। मन बेटा-बेटी, पति-पत्नी, सम्बन्धी रिश्तेदार यार-दोस्त, धन-दौलत, मान-बड़ाई, काम-क्रोध आदि में रम रहा है। इसका फैलाव कहां नहीं है। मन सब जगह फैला हुआ है।
सोचता है कि बेटे की शांदी कर लूँ तो फिर भजन करूंगा। शादी हो गई तो पोते की कामना करने लगता है। वो भी बड़ा हो गया तो उसका भी ब्याह रचाने लगता है। कहने का मतलब ये कि इतने सारे बन्धनों में वह इस कदर जकड़ा हुआ है कि वह इन तकलीफों को दूर करना तो दूर रहा वह इन्हें पसन्द करने लगा है। इसलिए रोज बैठो । एक घन्टा भजन करो । सुमिरन ध्यान भी करो । बैठते-२ जब मन की आदत पड़ जाएगी तो धीरे-२ दया में रुकने लगेगा।
Question:- Swami ji! It has been two years since I took Namdaan but my mind does not stop in bhajan, what should I do?
Answer:- Mind is not a toy that you can move around whenever you want. The nature of the mind has been there for ages and removing that habit is not the work of a day, month or year. This is a fight of a lifetime. Only those who have fought or are fighting with the mind know how difficult it is to win the mind. The mind is engrossed in sons-daughters, husband-wife, relatives-friends, money-wealth, pride, lust-anger etc. Where is it not spread? The mind is spread everywhere.
He thinks that if he gets his son married then he will do bhajan. After getting married, he starts wishing for a grandson. When he also grows up, he also starts arranging her marriage. What I mean to say is that he is so trapped in so many bondages that far from trying to get rid of these problems, he has started liking them. So sit every day. Do bhajan for an hour. Do meditation also. When the mind gets used to sitting, it will gradually start stopping in pity. |