उत्तर:- अगर संगति अच्छी न हो तो भजन सुमिरन नहीं बन सकता । भजन के लिए सच्चा हृदय, अच्छा चाल-चलन,
सच्चा व्यवहार जरूरी है। यह सही है कि जब तक वासनायें प्रबल रहेंगी, जोर मारती रहेंगी तब तक मन स्थिर हो ही नहीं सकता । मन इन्द्रियों का गुलाम रहेगा और इन्द्रियों को भोग खींचते रहेंगे। काम के वशीभूत होकर इन्सान अपना रिश्ता भी भूल न जाता है। काम अन्धा होता है। काम और नाम एक दूसरे के न विपरीत हैं, उनमें बड़ा फर्क है।
नाम की चढ़ाई ऊपर की ओर है और काम की खिचावट नीचे को है | शक्ति संचय ही जीवन है। शक्ति के क्षय से पुरुष के माथे की ज्योति बुझ जाती है। मन को वासनाओं की तरफ से मोड़ कर भजन ध्यान में लगाओ | इसका अभ्यास जरूरी है और इसके लिए सत्संग बराबर मिलते रहना चाहिए। सत्संग से ही सब कछ होगा। थोड़े-थोड़े अन्तराल पर गुरु के पास जाकर दर्शन और सत्संग का लाभ लेना आवश्यक है।
Question:- Swami ji! Desires keep shaking the mind, it doesn't make sense, what should I do?
Answer:- If the company is not good then the bhajan cannot become a remembrance. A true heart for bhajan, good conduct, Honest behavior is necessary. It is true that as long as the desires remain strong and forceful, the mind cannot become stable. The mind will remain a slave to the senses and will continue to attract pleasures from the senses. Being under the influence of lust, a person does not even forget his relationships. Work is blind. Work and name are not opposite to each other, there is a big difference between them.
The ascent of name is upward and the pull of work is downwards. Accumulation of power is life. Due to loss of power the light on a man's forehead gets extinguished. Divert your mind from desires and concentrate on bhajans. Its practice is necessary and for this satsang should be held regularly. Everything will happen only through satsang. It is necessary to go to the Guru at regular intervals and take the benefit of darshan and satsang. |