उत्तर:- मौत के वक्त सत्संगी की सुरत (आत्मा) को गुरू स्वंय॑ लेने आते हैं। उसे काल के हवाले नहीं करते हैं । पुनर्जन्म मिलने की स्थिति में से पहली मंजिल यानी सहसदल कंवाल में रोका जाता है लेकिन इससे नीचे नहीं । सब कुछ गुरू के अधीन है। जिस प्रकार को प्रेम, विश्वास और भक्ति होती है उसी के अनुसार दया होती है। गुरू तो ऊपर ले जाना चाहते हैं लेकिन जीव उन सूक्ष्म मण्डलों के आनन्द को छोड़ना नहीं चाहता इसलिए गुरू किसी प्रकार की जोर जबर्दस्ती नहीं करते ।
माया का वहां बहुत बड़ा जबरदस्त जाल फैला हुआ है। पहली या दूसरी मंजिल को पार करने के समय तक पिछले जन्मों की स्मृति गुरू गुप्त रखते हैं। ऐसा इसलिए करते हैं कि पुराने मोह फिर ताजे न हो जाय॑ और आगे की चढ़ाई में बाधक न हों। लेकिन जब जीव दूसरी मंजिल (त्रिकुटी) को पार कर लेता है तब आत्मा बलवती हो जाती है, मन वश में आ जाता है और पुरानी स्मृतियों से कूछ खतरा नहीं रहता ।
तब आत्मा को केवल अपना ही नहीं बल्कि अन्य लोगों के पूर्व जन्मों का ज्ञान प्राप्त हे जाता है| त्रिकुटी को पार करके जीवात्मा जब पारब्रह्म में पहुंचती है तब इसके ऊपर के सारे खोल उतर जाते हैं और यह अपना वास्तविक चेतन स्वरूप धारण कर लेती है। इसका अपना स्वयं का प्रकाश ईश्वर और ब्रह्म के प्रकाश से बहुत ज्यादा है।
Question:- Swami ji! How does a Guru take care of a Satsangi's soul at the time of his death?
Answer:- At the time of death, the Guru himself comes to take the form (soul) of the satsangi. Do not hand him over to time. In the event of rebirth, one is stopped at the first level i.e. Sahasdal Kanwal but not below that. Everything is under the Guru. There is mercy according to the type of love, trust and devotion. The Guru wants to take him higher but the living being does not want to give up the joy of those subtle regions, hence the Guru does not use any kind of force.
There is a huge web of Maya spread there. The Guru keeps the memory of previous births secret till the time of crossing the first or second floor. This is done so that old attachments do not become fresh again and do not become a hindrance in further ascent. But when the soul crosses the second stage (Trikuti) then the soul becomes stronger, the mind comes under control and there is no longer any danger from old memories.
Then the soul gets the knowledge not only of its own but also of the previous lives of other people. When the soul crosses Trikuti and reaches Parabrahma, then all the shells above it come off and it assumes its real conscious form. Its own light is much greater than the light of God and Brahma. |