उत्तर:- शरीर कोई भी हो चाहे मनुष्य का हो, जानवर का हो या पक्षी का हो' सबमें जीवात्मा है। शरीर से जीवात्मा जब अलग कर दी जाती है। यानी जब मौत हो जाती है तब . इसी शरीर को लोग अपवित्र मानने लगते हैं और इसे दूर ले जाकर जला देते हैं, गाड़ देते हैं। लिया तुमने क्या किया कि इस पेट को तुमने शमशान बना कब्रिस्तान बना लिया। जिभ्या के स्वाद के लिए मुर्द बन हो यह तो कर्मों का देश है। जिसे तुमने काटा है जाओगे। नि जार जाओगे गन जाओगे हो होगा यही ईश्वरीय विधान है।
दर्द नहीं समझना चाहिए कि तुम्हारे कर्मों को कोई देख नहीं रहा है | तुम्हारे सारे क्माँ की रील चल रही है। अच्छा करो या बुरा करो सब लिखा जा रहा है। मरने के बाद सबका फैसला होता है। इसलिए ऐसे कर्मों को नहीं करना चाहिए जिससे यमराज की कचहरी में सजा. मिल जाय। अण्डा हो, मुर्ग हो या किसी जानवर का मांस हो कभी सेवन नहीं करना चाहिए। नामदान लेने से पहले सबका परित्याग करना होता है। स्वामी जी! भजन के वक्त अन्तर में घन्टे की आवाज नहीं सुनाई पड़ती, दया कीजिए ।
जब तुम दृढ़ता के साथ निश्चय करके भजन में बैठोगे और एकाग्रता जब आएगी तब तमाम आवाजें सुनाई पड़ेंगी उनमें एक आवाज घन्टा और शंख की भी होगी। घन्टे की आवाज निरंजन भगवान के स्थान सहसदल-कंवल से आती है। तुम्हें करना ये है कि इस आवाज को छांटना है और फिर पकड़ना है । बड़ी मधुर आवाज है। इसे सुनकर जीवात्मा में एक प्रकार का नशा होने लगता है, एकाग्रता आने लगती है।
जब एकाग्रता पूरी होगी तो ये आवाज जीवात्मा को चुम्बक की तरह खींच लेगी और निरंजन भगवान (ईश्वर, खुदा, ७००) के सामने ले जाकर खड़ा कर देगी फिर-वहां जाकर परमात्मा का साक्षात्कार होता है। इसी आवाज को “नाम' भी कहते हैं, 'शब्द-धुन' भी कहते हैं और ईसाई इसे ४४०० कहते हैं।
जीवात्मा जब सहसदल कंवल में पहुंचकर ईश्वर का दर्शन करती है तो इसमें भी वही शक्ति आ जाती है जो उनमें है। शब्द में लय दोनों आंखों बैठी जीवात्मा होने के बाद अभी दोनों आंखों के पीछे वै र | अपनी खोई शक्ति को पाकर परम प्रकाशवान हो जाती है, सर्व व्यापी हो जाती है ।
Question:- Swami ji! Why is it forbidden to eat meat?
Answer:- Whatever the body may be, be it human, animal or bird, there is a soul in all. When the soul is separated from the body. That is, when death occurs. People start considering this body as impure and take it away, burn it and bury it. Lia, what did you do that you turned this stomach into a crematorium and a graveyard? You may become a corpse for the taste of your tongue, this is a country of deeds. The one you have cut will go away. If you go out, you will go, this will happen, this is the divine law.
Pain should not be assumed that no one is watching your actions. All your commands are reeling. Do good or bad, everything is being written. Everyone's decision is taken after death. Therefore, one should not do such deeds which will lead to punishment in the court of Yamraj. May you meet. Be it egg, chicken or meat of any animal, it should never be consumed. Before taking Namdaan one has to renounce everything. Swami ji! The sound of the bell is not heard during the bhajan, please have mercy.
When you sit in bhajan with firm determination and concentration, then many sounds will be heard, among them the sound of bell and conch will also be heard. The sound of the bell comes from Sahasdal-Kanwal, the place of Lord Niranjan. What you have to do is to sort out this voice and then catch it. It is a very sweet voice. Hearing this, a kind of intoxication begins in the soul and concentration begins.
When the concentration is complete, this voice will pull the soul like a magnet and will make it stand in front of Niranjan Bhagwan (Ishwar, Khuda, 700) and then by going there the Supreme Soul is realized. This voice is also called 'Naam', 'Shabad-Tune' and Christians call it 4400.
When the soul reaches Sahasdal Kanwal and sees God, it also gets the same power which is there in it. There is rhythm in the word, after having a soul sitting in both the eyes, now there is anger behind both the eyes. After regaining its lost power, it becomes extremely luminous and becomes all-pervasive. |