उत्तर - मुक्ति बहुत ऊँचे रुहानी मण्डलों को पार करने के बाद मिलती है अर्थात् आत्मा जब अपने सारे गिलाफों (स्थूल, लिंग, सूक्ष्म और कारण) को उतार देती! है और उसके बाद मानसरोवर में स्नान करती है तब मुक्ति मिलती है फिर जीवात्मा जन्म-मरण के चक्कर मैं नहीं आती रस स्थूल का मोटा पर्दा जीवात्मा पर चढ़ा हुआ है यानी इस पंच भौतिक पर्दे में वह बन्द है । सन्त सतगुरु द्वारा बताई गई साधना को करने में जीवात्मा इस शरीर को छोड़कर अलग हो जाती है |
मृत्यु के समय निकल जाने के बाद यह वापस शरीर मैं नहीं आती किन्तु अभ्यास के द्वारा जैसा गुरु ने बताया है वह जीते जी शरीर से अलग होकर ऊपरी मण्डलों की सैर करती है देवी देवताओं से मिलती है और फिर वापस शरीर में लौट आती है । जड़ यह शरीर है और चेतन यह आत्मा है | दोनों की गांठ बंधी हुई है जब अभ्यास के द्वारा यह गांठ खुलती है तब जीवात्मा प्रकाश में खड़ी हो जाती है और उसे इस लोक का और ऊपर के लोकों स्वर्ग बैकुण्ठ आदि का ज्ञान होने लगता है ।
तो जबान से किसी का भी नाम लिया जाय उससे मुक्ति मोक्ष मिलने वाला नहीं । उस “नाम” का जाप करने से जो अपने आप चारों युर्गों से एक रफ्तार से बज रहा है मुक्ति मिलेगी । उसे अनहद वाणी, आकाश वाणी, देव वाणी, आदि नामों से पुकारते हैं। वह ईश्वरीय संगीत इस मनुष्य शरीर में दोनों आंखों के मध्य भाग में जहां जीवात्मा बैठी है बराबर हो रहा है किन्तु जीवात्मा के कान बन्द हैं इसलिए सुनाई नहीं देता । उस नाम की जो ईश्वरीय संगीत है बड़ी महिला है ।
गोस्वामी तुलसीदास जी ने कहा है कि - कहा कहउं लगि नाम बड़ाई | राम न सकहिं नाम गुण गाई || |