उत्तर - जिस तरह से आत्मा शरीर में आती है उसी तरह से वापस जाती है । जीवात्मा दोनों आंखों के पीछे तीसरे तिल में ठहरी है । यह सूर्य की तरह है । तीसरे तिल से इसकी किरणें नाभि से टकराकर सारे शरीर में फैलती हैं और सारे शरीर को जीवन देती हैं । मौत के वक्त आत्मा की किरणें सिमट कर पहले नाभि में इकट्ठी होती हैं । उस समय नाड़ी छूटने लगती है । वह घबडाहट का समय होता है ।
ऊपर में तीन रास्ते है सतगुरु दाई तरफ सफेद स्थान पर बैठक रखते हैं काल बाई तरफ श्याम स्थान पर खड़ा रहता है और आत्मा को बीच के रास्ते से जाना पड़ता है सत्संगी की रूह को सतगुरु भाई और जाने के पहले ही संभाल लेते हैं और काल के हवाले नहीं होने देते जीवात्मा सतगुरु के पीछे-पीछे खिंची चली जाती है
अगर उसकी इच्छा दुनिया में है तो ऊंचे स्थान तक नहीं जा सकती यदि जीवात्मा की इच्छा दुनिया में नहीं है फिर वह उड़ती चली जाएगी कहां तक, किस स्थान, तक वह उड़ जाएगी यह उसके गुरु के प्रति प्रेम, प्रीत, सुख और कर्मों पर निर्भर करता है
Swami ji! How does the soul leave the body at the time of death?
Answer: The way the soul comes to the body, it goes back in the same way. The soul resides in the third mole behind both the eyes. It is like the sun. From the third mole, its rays hit the navel and spread throughout the body and give life to the entire body. At the time of death, the rays of the soul first shrink and gather in the navel. At that time the pulse starts to disappear. That is a time of panic.
There are three paths up there, the Satguru keeps the meeting place at the white place on the right side, Kaal stands at the black place on the left side and the soul has to go through the middle path. Satguru Bhai takes care of the soul of the satsangi before leaving and Kaal The soul does not allow surrender and gets pulled behind the Satguru.
If its desire is in the world then it cannot go to higher places. If the soul s desire is not in the world then it will keep flying, to what place, to what place it will fly, it depends on its love, affection, happiness and deeds towards its Guru. |